Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्विध देवों की प्रज्ञापना १३९. से किं तं देवा ?
[ प्रज्ञापना सूत्र
देवा चउव्विहा पण्णत्ता । तं जहा भवणवासी १ वाणमंतरा २ जोइसिया ३ वेमाणिया ४ | [१३९ प्र.] देव कितने प्रकार के हैं ?
[१३९ उ.] देव चार प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं- (१) भवनवासी, (२) वाणव्यन्तर, (३) ज्योतिष्क और ( ४ ) वैमानिक ।
१४०. [१] से किं तं भवणवासी ?
भवणवासी दसविहा पन्नत्ता । तं जहा - असुरकुमारा १ नागकुमारा २ सुवण्णकुमारा ३ विज्जुकुमारा ४ अग्गिकुमारा ५ दीवकुमारा ६ उदहिकुमारा ७ दिसाकुमारा ८ वाउकुमारा ९ थणियकुमारा १० ।
[१४० - १ प्र.] भवनवासी देव किस प्रकार के हैं ?
[१४० - १ उ.] भवनवासी देव दस प्रकार के हैं - (१) असुरकुमार, (२) नागकुमार, (३) सुपर्णकुमार, (४) विद्युत्कुमार, (५) अग्निकुमार, (६) द्वीपकुमार, (७) उदधिकुमार, (८) दिशाकुमार, (९) पवन (वायु) कुमार और (१०) स्तनितकुमार ।
(२) ते समासतो दुविहा पण्णत्ता । तं जहा — पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य से त्तं भवणवासी । [१४०-२] ये (दस प्रकार के भवनवासी देव) संक्षेप में दो प्रकार के कहे गए हैं। यथा- पर्याप्तक और अपर्याप्तक ।
यह भवनवासी देवों की प्ररूपणा हुई ।
१४१. [१] से किं तं वाणमंतरा ?
वाणमंतरा अट्ठविहा पण्णत्ता । तं जहा - किन्नरा १ किंपुरिसा २ महोरगा ३ गंधव्वा ४ जक्खा ५ रक्खसा ६ भूया ७ पिसाया ८ ।
[१४१-१ प्र.] वाणव्यन्तर देव कितने प्रकार के हैं ?
[१४१-१ उ.] वाणव्यन्तर देव आठ प्रकार के कहे गए हैं। जैसे- (१) किन्नर, (२) किम्पुरुष, (३) महोरग, (४) गन्धर्व, (५) यक्ष, (६) राक्षस, (७) भूत और (८) पिशाच ।
[२] से समासतो दुविहा पण्णत्ता । तं जहा - पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य । से त्तं वाणमंतरा । [१४१-२] वे (उपर्युक्त किन्नर आदि आठ प्रकार के वाणव्यन्तर देव) संक्षेप में दो प्रकार के कहे गए हैं; पर्याप्तक और अपर्याप्तक । यह हुआ उक्त वाणव्यन्तरों का वर्णन ।
१४२. [१] से किं तं जोइसिया ?
जोइसिया पंचविहा पन्नत्ता । तं जहा चंदा १ सूरा २ गहा ३ नक्खता ४ तारा ५ ।