Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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३४६]
[प्रज्ञापना सूत्र __ [३८९-२ प्र.] भगवन्! अपर्याप्त गर्भज खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ?
[३८९-२ उ.] गौतम! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पज्जत्तयगब्भवक्कंतियखहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागो अंतोमुहुत्तूणो ।
[३८९-३ प्र.] भगवन्! पर्याप्त गर्भज खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[३८९-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के असंख्यातवें भाग की है।
__ विवेचन तिर्यच पंचेन्द्रिय जीवों की स्थिति का निरूपण—प्रस्तुत १८ सूत्रों (सू. ३७२ से ३८९) में तिर्यञ्च जीवों के विभिन्न प्रकारों की स्थिति का निरूपण किया गया है। मनुष्यों की स्थिति की प्ररूपणा
३९०. [१] मणुस्साणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? । गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई। [३९०-१ प्र.] भगवन् ! मनुष्यों की कितने काल तक की स्थिति कही गई है ?
[३९०-१ उ.] गौतम! (मनुष्यों की स्थिति) जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है।
[२] अपज्जत्तगमणुस्साणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [३९०-२ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तक मनुष्यों की स्थिति कितने काल की है ? [३९०-२ उ.] गौतम! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पज्जत्तयमणुस्साणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई। [३९०-३ प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३९०-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम की है। ३९१. सम्मुच्छिममणुस्साणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वि अंतोमुहुत्तं। [३९१ प्र.] भगवन् ! सम्मूछिम मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?