Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापना सूत्र ही विभंगज्ञानी की है। चक्षुदर्शनी और अचक्षुदर्शनी की (पर्यायसम्बन्धी वक्तव्यता) आभिनिबोधिकज्ञानी की तरह है। अवधिदर्शनी की (पर्याय-वक्तव्यता) अवधिज्ञानी की तरह है। (विशेष बात यह है कि) जहाँ ज्ञान है, वहाँ अज्ञान नहीं है; जहाँ अज्ञान है; वहाँ ज्ञान नहीं है; जहाँ दर्शन है, वहँ ज्ञान भी हो सकते हैं, अज्ञान भी हो सकते हैं, ऐसा कहना चाहिए।
. विवेचन - जघन्य-अवगाहनादि विशिष्ट पंचेन्द्रियतिर्यंचों की विविध अपेक्षाओं से पर्यायप्ररूपणा – प्रस्तुत आठ सूत्रों (सू. ५८१ से ५८८) में जघन्य, उत्कृष्ट और मध्यम अवगाहना आदि वाले पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों की, द्रव्य, प्रदेश, अवगाहना, स्थिति, वर्णादि, ज्ञानाज्ञानदर्शनयुक्त आदि विभिन्न अपेक्षाओं से पर्यायों की प्ररूपणा की गई है।
जघन्य अवगाहना वाले तिर्यंचपंचेन्द्रिय स्थिति की अपेक्षा त्रिस्थानपतित - जघन्य अवगाहना वाला तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय आयु सम्बन्धी काल मर्यादा (स्थिति) की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित होता है, चतुःस्थानपतित नहीं; क्योंकि जघन्य अवगाहना वाला पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च संख्यात वर्षों की आयु वाला ही होता है, असंख्यातवर्षों की आयु वाले के जघन्य अवगाहना नहीं होती। इसी कारण यहां जघन्य अवगाहनावान् तिर्यंचपंचेन्द्रिय स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित कहा गया है, जिसका स्वरूप पहले बताया जा चुका है।
जघन्य अवगाहना वाले तिर्यंचपंचेन्द्रिय में अवधि या विभंगज्ञान नहीं - जघन्य अवगाहना वाला पंचेन्द्रियतिर्यंच अपर्याप्त होता है, और अपर्याप्त होकर अल्पकाल वाले जीवों में उत्पन्न होता है, इसलिए उसमें अविधज्ञान या विभंगज्ञान संभव नहीं। इस कारण से यहाँ दो ज्ञानों और दो अज्ञानों का ही उल्लेख है। यद्यपि आगे कहा जाएगा कि कोई जीव विभंगज्ञान के साथ नरक से निकलकर संख्यात वर्षों की आयु वाले पंचेन्द्रियतिर्यंचों में उत्पन्न होता है, किन्तु वह महाकायवालों में ही उत्पन्न हो सकता है, अल्पकाय वालों में नहीं। इसलिए कोई विरोध नहीं समझना चाहिए। अवगाहना में षट्स्थानपतित होता नहीं है।
मध्यम अवगाहना वाला पंचेन्द्रिय तिर्यंच अवगाहना एवं स्थिति की दृष्टि से चतुःस्थानपतित - चूंकि मध्यम अवगाहना अनेक प्रकार की होती है; अतः उसमें संख्यात-असंख्यातगुण हीनाधिकता हो सकती है तथा मध्यम अवगाहना वाला असंख्यात वर्ष की आयुवाला भी हो सकता है, इसलिए स्थिति की अपेक्षा से भी वह चतुःस्थानपतित है।
उत्कृष्ट स्थितिवाले तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय की पर्यायवक्तव्यता - उत्कृष्ट स्थितिवाले पंचेन्द्रियतिर्यंच तीन पल्योपम की स्थिति वाले होते हैं, अतः उनमें दो ज्ञान, दो अज्ञान होते हैं। जो ज्ञान वाले होते हैं, वे वैमानिक की आयु बाँध लेते हैं, तब दो ज्ञान होते हैं। इस आशय से उनमें दो ज्ञान अथवा दो अज्ञान कहे हैं। १. (क) प्रज्ञापनासूत्र, म. वृत्ति, पत्रांक १९३-१९४ (ख) प्रज्ञापना. प्रमेयबोधिनी. भा. २, पृ. ७२१ से ७२७ तक