Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 521
________________ ४२०] [प्रज्ञापना सूत्र की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, तथा अवगाहना की दृष्टि से तुल्य है, (किन्तु) स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित है, तथा वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्ष के पर्यायों की अपेक्षा से, एवं तीन ज्ञान, दो अज्ञान और तीन दर्शनों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। ___ [२] उक्कोसागाहणए वि एवं चेव। नवरं ठितीए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहितेजति हीणे असंखेजतिभागहीणे, अह अब्भहिए असंखेजतिभागमब्भहिते; दो णाणा दो अण्णाणा दो दंसणा। [४८९-२] उत्कृष्ट अवगाहना वाले मनुष्यों के पर्यायों के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति की अपेक्षा से कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक होता है। यदि हीन हो तो असंख्यातभागहीन होता है, यदि अधिक हो तो असंख्यातभाग अधिक होता है। उनमें दो ज्ञान, दो अज्ञान और दो दर्शन होते हैं। [३] अजहण्णमणुक्कोसोगाहणाए वि एचं चेव।णवरं ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए चउट्ठाणवडिते, आइल्लहिं चउहिं नाणेहिं छट्ठाणवडिते, केवलणाणपज्जवेहिं तुल्ले, तिहिं अण्णाणेहिं तहिं दंसणेहिं छट्ठाणवडिते, केवलदंसणपज्जवेहिं तुल्ले। ___[४८९-३] अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) अवगाहना वाले मनुष्यों का (पर्याय-विषयक कथन) भी इसी प्रकार करना चाहिए। विशेष यह है कि अवगाहना की दृष्टि से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, तथा आदि के चार ज्ञानों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, केवलज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है, तथा तीन अज्ञान और तीन दर्शनों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, केवलदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है। ४९०. [१] जहण्णठितीयाणं भंते! मणुस्साणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चति ? गोयमा! जहण्णठितीए मणुस्से जहण्णठितीयस्स मणूसस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्ठयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए तुल्ले, वण्ण-गन्ध-रस-फासपज्जवेहिं दोहिं अण्णाणेहिं दोहिं दंसणेहिं छट्ठाणवडिते। [४९०-१ प्र.] भगवन् ! जघन्य स्थिति वाले मनुष्यों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [४९०-१ उ.] गौतम! उनके अनन्त पर्याय कहे हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्य स्थिति वाले मनुष्यों के अनन्त पर्याय हैं ? [उ.] गौतम! एक जघन्य स्थिति वाला मनुष्य, दूसरे जघन्य स्थिति वाले मनुष्य से द्रव्य की • अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है, स्थिति

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