Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पांचवा विशेषपद (पर्यायपद ) ]
[ ४३१
हीन है तो अनन्तभाग हीन है, या असंख्यात भाग हीन है अथवा संख्यातभाग हीन है; अथवा संख्यातगुण ही है, असंख्यातगुणहीन है या अनन्तगुण-हीन है। यदि अधिक है तो अनन्तभाग अधिक है, असंख्यातभाग अधिक है, अथवा संख्यातभाग अधिक है । अथवा संख्यातगुण अधिक है, असंख्यातगुण अधिक है, या अनन्तगुण अधिक है। इसी प्रकार अवशिष्ट (काले वर्ण के सिवाय बाकी के) वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है । स्पर्शो में शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। हे गौतम! इस हेतु से ऐसा कहा गया है कि परमाणु- पुद्गलों के अनन्त पर्याय प्ररूपित हैं । ५०५. दुपदेसियाणं पुच्छा ।
गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता ।
सेकेणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति ?
गोयमा! दुपदेसिए दुपदेसियस्स दव्वट्ट्याए तुल्ले, पदेसट्ट्याए तुल्ले, ओगाहणट्टयाए सिय सियतुल्ले सिय अब्भहिते - जति हीणे पदेसहीणे, अह अब्भहिते पदेसमब्भहिते; ठितीए चउट्ठाणवडिते, वण्णादीहिं उवरिल्लेहिं चउहिं फासेहि य छट्ठाणवडिते ।
[५०५ प्र.] भगवन् ! द्विप्रदेशिक स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए है ?
[५०५ उ.] गौतम ! उनके अनन्त पर्याय कहे हैं ।
[प्र.] भगवन्! ऐसा किस कारण से कहा गया है कि द्विप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं ?
[उ.] गौतम! एक द्विप्रदेशिक स्कन्ध, दूसरे द्विप्रदेशिक स्कन्ध से, द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है और कदाचित् अधिक है। यदि हीन हो तो एक प्रदेश हीन होता है। यदि अधिक हो तो एक प्रदेश अधिक होता है । स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित होता है, वर्ण आदि की अपेक्षा से और उपर्युक्त चार (शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष) स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित होता है ।
५०६. एवं तिपएसिए वि । नवरं ओगाहणट्टयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिते जति हीणे पएसहीणे वा दुपएसहीणे वा, अह अब्भहिते पएसमब्भहिते वा दुपएसमब्भहिते वा ।
५०६ . इसी प्रकार त्रिप्रदेशिक स्कन्धों के ( पर्यायों के विषय में कहना चाहिए।) विशेषता यह है कि अवगाहना की दृष्टि से कदाचित् हीन्, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक होता है। यदि हीन हो तो एक प्रदेशहीन या द्विप्रदेशों से हीन होता है। यदि अधिक हो तो एक प्रदेश अधिक अथवा दो प्रदेश अधिक होता है ।
५०७. एवं जाव दसपएसिए । नवरं ओगाहणाए पएसपरिवुड्डी कायव्वा जाव दसपएसिए वसही ति ।