Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पांचवा विशेषपद (पर्यायपद)]
[३] अजहण्णमणुक्कोसोगाहणगाणं भंते! पोग्गलाणं पुच्छा । गोयमा! अणंता। से केणढेणं?
गोयमा! अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए पोग्गले अजहण्णमणुक्कोसोगाहणगस्स पोग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्ठयाए छट्ठाणवडिते, ओगाहणट्ठयाए चउढाणवडिते, ठितीए चउट्ठाणवडिते, वण्णादि-अट्ठफासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते।
[५५५-३ प्र.] भगवान् ! मध्यम अवगाहन वाले पुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [५५५-३. उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय (कहे हैं)।
[प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है (कि मध्यम अवगाहना वाले पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं)?
[उ.] गौतम! एक मध्यम अवगाहना वाला पुद्गल, दूसरे मध्यम अवगाहना वाले पुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है; स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है और वर्णादि तथा अष्ट स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है।
५५६. [१] जहण्णद्वितीयाणं भंते ! पोग्गलाणं पुच्छा । गोयमा! अणंता। से केणढेणं?
गोयमा! जहण्णठितीए पोग्गले जहण्णठितीयस्स पोग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्ठयाए छट्ठाणवडिते, ओगाहणट्ठयाए चउढाणवडिते, ठितीए तुल्ले, वण्णादि-अट्ठफासपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते।
[५५६-१प्र.] भगवन् ! जघन्य स्थिति वाले पुद्गलों के कितने पर्याय कहे हैं ? [५५६-१ उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय कहे हैं। [प्र.] किस कारण से ऐसा कहा जाता है ?
[उ.] गौतम! एक जघन्य स्थिति वाला पुद्गल, दूसरे जघन्य स्थिति वाले पुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है। प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है; अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से तुल्य है, और वर्णादि तथा अष्ट स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है।
[२] एवं उक्कोसठितीए वि। [५५६-२] इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले (पुद्गलों के पर्यायों के विषय में भी कहना चाहिए।) [३] अजहण्णमणुक्कोसठितीए एवं चेव। नवरं ठितीए वि चतुट्ठाणवडिते। [५५६-३] अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) स्थिति वाले पुद्गलों की पर्यायसम्बन्धी वक्तव्यता भी