Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापना सूत्र है, क्योंकि सिद्धपर्याय सादि होने पर भी अनन्त (अन्तरहित) है, सिद्ध जीव सदाकाल सिद्ध ही रहते हैं। द्वितीय चतुर्विंशतिद्वार : नैरयिकों से अनुत्तरौपपातिकों तक के उपपात और उद्वर्तना के विरहकाल की प्ररूपणा
५६९. रयणप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता। [५६९ प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभा-पृथ्वी के नैरयिक कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं ?
[५६९ उ.] गौतम! (उनका उपपातविरहकाल) जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त तक का (कहा गया है।)
५७०. सक्करप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा! जहणणेणं एगं समयं, उक्कोसेणं सत्त रातिंदियाणि। [५७० प्र.] भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी के नारक कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं ?
[५७० उ.] गौतम! (वे) जघन्य एक समय तक और उत्कृष्टतः सात रात्रि-दिन तक (उपपात से विरहित रहते हैं।)
५७१. वालुयप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अद्धमासं। [५७१ प्र.] भगवन् ! वालुकापृथ्वी के नारक कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं ?
[५७१ उ.] गौतम ! (वे) जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट अर्द्धमास तक (उपपात से विरहित रहते हैं।)
५७२. पंकप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं मासं। [५७२ प्र.] भगवन् ! पंकप्रभापृथ्वी के नैरयिक कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं ?
[५७२ उ.] गौतम! (वे) जघन्यतः एक समय तक और उत्कृष्टतः एक मास तक (उपपातविरहित रहते हैं।)
५७३. धूमप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केवतियं कालं विरहिता उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं दो मासा। [५७३ प्र.] भगवन! धूमप्रभापृथ्वी के नारक कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं ?
[५७३ उ.] गौतम! जघन्यतः एक समय तक और उत्कृष्टतः दो मास तक (उपपात से विरहित होते हैं।)
१. (क) प्रज्ञापना. म. वृत्ति, पत्रांक २०५
(ख) प्रज्ञापना. प्र. बो. टीका भा. २, पृ. ८३७