Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 571
________________ ४७०] [प्रज्ञापना सूत्र है, क्योंकि सिद्धपर्याय सादि होने पर भी अनन्त (अन्तरहित) है, सिद्ध जीव सदाकाल सिद्ध ही रहते हैं। द्वितीय चतुर्विंशतिद्वार : नैरयिकों से अनुत्तरौपपातिकों तक के उपपात और उद्वर्तना के विरहकाल की प्ररूपणा ५६९. रयणप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता। [५६९ प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभा-पृथ्वी के नैरयिक कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं ? [५६९ उ.] गौतम! (उनका उपपातविरहकाल) जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त तक का (कहा गया है।) ५७०. सक्करप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा! जहणणेणं एगं समयं, उक्कोसेणं सत्त रातिंदियाणि। [५७० प्र.] भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी के नारक कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं ? [५७० उ.] गौतम! (वे) जघन्य एक समय तक और उत्कृष्टतः सात रात्रि-दिन तक (उपपात से विरहित रहते हैं।) ५७१. वालुयप्पभापुढविनेरइया णं भंते ! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अद्धमासं। [५७१ प्र.] भगवन् ! वालुकापृथ्वी के नारक कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं ? [५७१ उ.] गौतम ! (वे) जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट अर्द्धमास तक (उपपात से विरहित रहते हैं।) ५७२. पंकप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं मासं। [५७२ प्र.] भगवन् ! पंकप्रभापृथ्वी के नैरयिक कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं ? [५७२ उ.] गौतम! (वे) जघन्यतः एक समय तक और उत्कृष्टतः एक मास तक (उपपातविरहित रहते हैं।) ५७३. धूमप्पभापुढविनेरइया णं भंते! केवतियं कालं विरहिता उववाएणं पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं दो मासा। [५७३ प्र.] भगवन! धूमप्रभापृथ्वी के नारक कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं ? [५७३ उ.] गौतम! जघन्यतः एक समय तक और उत्कृष्टतः दो मास तक (उपपात से विरहित होते हैं।) १. (क) प्रज्ञापना. म. वृत्ति, पत्रांक २०५ (ख) प्रज्ञापना. प्र. बो. टीका भा. २, पृ. ८३७

Loading...

Page Navigation
1 ... 569 570 571 572