Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 564
________________ पांचवा विशेषपद (पर्यायपद)] [४६३ यह हुई रूपी-अजीवपर्यायों की प्ररूपणा। और इस प्रकार अजीवपर्याय-सम्बन्धी निरूपण भी पूर्ण हुआ। विवेचन-जघन्यादियुक्त सामान्य पुद्गल-स्कन्धों की विभिन्न अपेक्षाओं से पर्यायप्ररूपणा- प्रस्तुत पांच सूत्रों (सू. ५५४ से ५५८ तक) में जघन्य-मध्यम-उत्कृष्ट प्रदेशी स्कन्धों, तथा जघन्यादि गुण विशिष्ट अवगाहना, स्थिति तथा कृष्णादि वर्गों, गन्ध-रस-स्पर्शों के पर्यायों की विभिन्न अपेक्षाओं से प्ररूपणा की गई है। मध्यमगुण काले पुद्गल स्वस्थान में षट्स्थानपतित हीनाधिक - एक मध्यमगुण काले पुद्गल से दूसरे मध्यमगुण काले पुद्गल में कृष्णवर्ण की अनन्तभागहीनता या अनन्तगुणहीनता, तथैव अनन्तभाग-अधिकता अथवा अनन्तगुण-अधिकता भी हो सकती है, क्योंकि मध्यमगुण के अनन्त विकल्प इसी तरह मध्यमगुण वाले सभी वर्णादि स्पर्शपर्यन्त स्वस्थान में षट्स्थानपतित होते हैं। उत्कृष्ट अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कंध की स्थिति तुल्य क्यों ?- उत्कृष्ट अवगाहना वाला,अनन्तप्रदेशी स्कंध सर्वलोकव्यापी होता है। वह या तो उचित महास्कंध होता है अथवा केवली समुद्घात की अवस्था में कर्मस्कंध हो सकता है। इन दोनों का काल दण्ड, कपाट, प्रतर और अन्तरपूरण रूप चार समय का ही होता है। अतएव इसकी स्थिति समान कही गई है। ॥ प्रज्ञापनासूत्र : पंचम विशेषपद (पर्यायपद) समाप्त॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572