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________________ [४६१ पांचवा विशेषपद (पर्यायपद)] [३] अजहण्णमणुक्कोसोगाहणगाणं भंते! पोग्गलाणं पुच्छा । गोयमा! अणंता। से केणढेणं? गोयमा! अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए पोग्गले अजहण्णमणुक्कोसोगाहणगस्स पोग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्ठयाए छट्ठाणवडिते, ओगाहणट्ठयाए चउढाणवडिते, ठितीए चउट्ठाणवडिते, वण्णादि-अट्ठफासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते। [५५५-३ प्र.] भगवान् ! मध्यम अवगाहन वाले पुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [५५५-३. उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय (कहे हैं)। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है (कि मध्यम अवगाहना वाले पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं)? [उ.] गौतम! एक मध्यम अवगाहना वाला पुद्गल, दूसरे मध्यम अवगाहना वाले पुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है; स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है और वर्णादि तथा अष्ट स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। ५५६. [१] जहण्णद्वितीयाणं भंते ! पोग्गलाणं पुच्छा । गोयमा! अणंता। से केणढेणं? गोयमा! जहण्णठितीए पोग्गले जहण्णठितीयस्स पोग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्ठयाए छट्ठाणवडिते, ओगाहणट्ठयाए चउढाणवडिते, ठितीए तुल्ले, वण्णादि-अट्ठफासपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते। [५५६-१प्र.] भगवन् ! जघन्य स्थिति वाले पुद्गलों के कितने पर्याय कहे हैं ? [५५६-१ उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय कहे हैं। [प्र.] किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? [उ.] गौतम! एक जघन्य स्थिति वाला पुद्गल, दूसरे जघन्य स्थिति वाले पुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है। प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है; अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से तुल्य है, और वर्णादि तथा अष्ट स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। [२] एवं उक्कोसठितीए वि। [५५६-२] इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले (पुद्गलों के पर्यायों के विषय में भी कहना चाहिए।) [३] अजहण्णमणुक्कोसठितीए एवं चेव। नवरं ठितीए वि चतुट्ठाणवडिते। [५५६-३] अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) स्थिति वाले पुद्गलों की पर्यायसम्बन्धी वक्तव्यता भी
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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