Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पांचवा विशेषपद (पर्यायपद)]
[४५३ से केणटेणं?
गोयमा! जहण्णगुणकक्खडे अणंतपएसिए जहण्णगुणकक्खडस्स अणंतपदेसियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्ठयाए छट्ठाणवडिते, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए चउट्ठाणवडिते, वण्ण-गंध-रसेहिं छट्ठाणवडिते, कक्खडफासपज्जवेहिं तुल्ले, अवसेसे हिं सत्तफासपज्जवेहि छट्ठाणवडिते।
[५४५-१ प्र.] भगवन् ! जघन्यगुणकर्कश अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे हैं ? [५४५-१ उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय (कहे हैं)।
[प्र.] भगवन् ! किस आशय से ऐसा कहते हैं कि जघन्यगुणकर्कश अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं ?
__ [उ.] गौतम! एक जघन्यगुणकर्कश अनन्तप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्यगुणकर्कश अनन्तप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है, स्थिति की दृष्टि से चतु:स्थानपतित है, एवं वर्ण, गंध, रस की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, कर्कशस्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है और अवशिष्ट सात स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानंपतित है।
[२] एवं उक्कोसगुणकक्खडे वि।
[५४५-२] इसी प्रकार उत्कृष्टगुणकर्कश (अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों के विषय में समझना चाहिए।)
[३] अजहण्णमणुक्कोसगुणकक्खडे वि एवं चेव। नवरं सट्ठाणे छट्ठाणवडिते ।
[५४५-३] मध्यमगुणकर्कश (अनन्तप्रदेशी स्कन्धों का पर्यायविषयक कथन भी) इसी प्रकार (करना चाहिए।) विशेष यह है कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित है।
५४६. एवं मउय-गरुय-लहुए वि भाणितव्वे।
[५४६] मृदु, गुरु (भारी) और (लघु) (हल्के) स्पर्श वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के पर्यायविषय में भी इसी प्रकार कथन करना चाहिए।
५४७. [१] जहण्णगुणसीयाणं भंते! परमाणुपोग्गलाणं पुच्छा । गोयमा! अणंता। से केणटेणं ?
गोयमा! जहण्णगुणसीते परमाणुपोग्गले जहण्णगुणसीतस्स परमाणुपोग्गलस्स दव्वट्ठयोए तुल्ले, पदेसट्टयाए तुल्ले, ओगाहणट्टयाए तुल्ले, ठितीए चउट्ठाणवडिते, वण्ण-गंध-रसेहिं छट्टाणवडिते, सीतफासपज्जवेहि य तुल्ले, उसणिफासो न भण्णति, णिद्ध-लुक्खफासपज्जवेहि छट्ठाणवडिते।