Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पांचवा विशेषपद (पर्यायपद ) ]
[ ४५१
[२] एवं उक्कोसगुणकालए वि।
'[५४१-२] इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले संख्यातप्रदेशी स्कन्धों की पर्यायों के विषय में कहना
चाहिए ।
[३] अजहण्णमणुक्को सगुणकालए वि एवं चेव । नवरं सट्ठाणे छट्टाणवडिते ।
[५४१-३] अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) गुणं काले संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेषता यह है कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित है।
५४२. [ १ ] जहण्णगुणकालयाणं भंते! असंखेज्जपएसियाणं पुच्छा ।
गोयमा! अणंता ।
सेकेणणं ?
गया! जहण्णगुणकालए असंखेज्जपएसिए जहण्णगुणकालगस्स असंखेज्जपएसियस्स दव्वट्टयाए तुल्ले, पएसट्टयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए चउट्ठाणवडिते, ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिए, कालवण्णपज्जवेहिं तुल्ले, अवसेसेहिं वण्णादि-उवरिल्लचउफासेहि य छट्टाणवडिते ।!!
[५४२-१ प्र.] भगवन्! जघन्यगुण काले असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [५४२ - १ उ.] गौतम ! (उनके) अनन्त पर्याय ( कहे हैं ।)
[प्र.] भगवन्! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि ( जघन्यगुण काले असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं) ?
[उ.] गौतम! एक जघन्यगुण काला असंख्यातप्रदेशी पुद्गल स्कन्ध, दूसरे जघन्यगुण काले असंख्यातप्रदेशी पुद्गलस्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है, स्थिति की दृष्टि से चतु:स्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है तथा कृष्णवर्ण के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है और शेष वर्ण आदि तथा ऊपर के चार स्पर्शो से षट्स्थानपतित है । [२] एवं उक्कोसगुणकालए वि ।
असंख्यात प्रदेशी स्कन्धों का पर्याय-विषयक कथन
[५४२-२] इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले करना चाहिए ।)
[३] अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव । णवरं सट्ठाणे छट्टाणवडिते । [५४२-३] इसी प्रकार मध्यमगुण वाले ( असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों के विषय में भी कहना चाहिए)। विशेष इतना है कि वह स्वस्थान में षट्स्थानपतित है ।
५४३. [ १ ] जहण्णगुणकालयाणं भंते! अनंतपएसियाणं पुच्छा ।
गोयमा ! अनंता ।
सेकेणणं भंते! एवं वुच्चति ?