Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 549
________________ [ प्रज्ञापना सूत्र ४४८ ] मध्यम अवगाहना वाले चतुःप्रदेशी स्कन्धों की हीनाधिकता — चतुःप्रदेशी स्कन्ध की जघन्य अवगाहना एक प्रदेश में और उत्कृष्ट अवगाहना चार प्रदेशों में होती है। मध्यम अवगाहना दो प्रकार की है— दो प्रदेशों में और तीन प्रदेशों में । अतएव मध्यम अवगाहना वाले एक चतुःप्रदेशी स्कन्ध से दूसरा चतुः प्रदेश स्कन्ध यदि अवगाहना से हीन होगा तो एकप्रदेशहीन ही होगा और अधिक होगा तो एकप्रदेशाधिक ही होगा। इससे अधिक हीनाधिकता उनमें नहीं हो सकती । मध्यमावगाहनाशील चतुःप्रदेशी से लेकर दशप्रदेशी स्कन्ध तक उत्तरोत्तर एक -एक प्रदेशवृद्धि - हानि - मध्यम अवगाहना वाले चतुप्रदेशी स्कन्ध से लेकर दशप्रदेशी स्कन्ध तक उत्तरोत्तर एक - एक प्रदेश की वृद्धि हानि होती है। तदनुसार चतुःप्रदेशी स्कन्ध में एक, पंचप्रदेशी स्कन्ध में दो, षट्प्रदेशी स्कन्ध में तीन, सप्तप्रदेशी स्कन्ध में चार, अष्टप्रदेशी स्कन्ध में पाँच, नवप्रदेशी स्कन्ध में छह और दशप्रदेशी स्कन्ध में सात प्रदेशों की वृद्धि हानि होती है । जघन्य अवगाहना वाला संख्यातप्रदेशी स्कन्ध प्रदेशों से द्विस्थानपतित——— जघन्य अवगाहना वाला संख्यातप्रदेशी एक स्कन्ध, दूसरे जघन्य अवगाहना वाले संख्यातप्रदेशी स्कन्ध से संख्यातभाग प्रदेशहीन या संख्यातगुण प्रदेशहीन होता है, यदि अधिक हो तो संख्यात भागप्रदेशाधिक अथवा संख्यातगुणप्रदेशाधिक होता है । इसीलिए इसे प्रदेशों की दृष्टि से द्विस्थानपतित कहा गया है । मध्यम अवगाहना वाला संख्यातप्रदेशी स्कन्ध स्वस्थान में द्विस्थानपतित — एक मध्यम अवगाहना वाला संख्यातप्रदेशी स्कन्ध दूसरे मध्यम अवगाहना वाले संख्यात प्रदेशी स्कन्ध से अवगाहना की दृष्टि से संख्या भाग हीन या संख्यातगुण हीन होता है, अथवा संख्यातभाग अधिक या संख्यातगुण अधिक होता है। मध्यम अवगाहना वाले असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध की पर्याय- प्ररूपणा — इसकी पर्याय- प्ररूपणा जघन्य अवगाहना वाले असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध की पर्याय- प्ररूपणा के समान ही है । मध्यम अवगाहना वाले अर्थात् — आकाश के दो से लेकर असंख्यात प्रदेशों में स्थित पुद्गलस्कन्ध की पर्यायप्ररूपणा इसी प्रकार है, किन्तु विशेष बात यह है कि स्वस्थान में चतुःस्थानपतित है । मध्यम अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध का अर्थ- आकाश के दो आदि प्रदेशों से लेकर असंख्यातप्रदेशों में रहे हुये मध्यम अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध कहलाते हैं । जघन्यस्थितिक संख्यातप्रदेशी स्कन्ध प्रदेशों की दृष्टि से द्विस्थानपतित — यदि हीन हो तो संख्यात भाग हीन या संख्यातगुण हीन होता है, यदि अधिक हो तो संख्यातभाग अधिक या संख्यातगुण अधिक होता है । इसलिए यह द्विस्थानपतित है । 1 १. (क) प्रज्ञानपनासूत्र. म. वृत्ति पत्रांक २०३ २. (क) प्रज्ञापना. म. वृत्ति, पत्रांक २०४ (ख) प्रज्ञापना. प्र. बो. टीका. पृ. ८४१ से ८५८ तक (ख) प्रज्ञापना. प्र बो. टीका. पृ. ८५९ - ८६०

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