Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 547
________________ ४४६] [प्रज्ञापना सूत्र ___ [उ.] गौतम! एक जघन्य स्थिति वाला संख्यातप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्य स्थिति वाले संख्यातप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से द्विस्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से द्विस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से तुल्य है, वर्णादि तथा चतु:स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। [२] एवं उक्कोसठितीए वि। [५३५-२] इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के विषय में कहना चाहिए। [३] अजहण्णमणुक्कोसठितीए वि एवं चेव। नवरं ठितीए चउट्ठावडिते। [५३५-३ प्र.] मध्यम स्थिति वाले संख्यातप्रदेशी स्कन्धों का पर्यायविषयक कथन भी इसी प्रकार करना चाहिए। विशेषता यह है कि स्थिति की अपेक्षा से वह चतुःस्थानपतित है। ५३६. [१] जहण्णठितीयाणं असंखेजपदेसियाणं पुच्छा । गोयमा! अणंता। से केणटेणं? गोयमा! जहण्णठितीए असंखेज्जपएसिए जहण्णठितीयस्स असंखेज्जपदेसियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्ठयाते चउट्ठाणवडिते, ओगाहणट्ठयाते चउट्ठाणवडिते, ठितीए तुल्ले, वण्र्णादि उवरिल्लचउप्फासेहि य छट्ठाणवडिते। [५३६-१ प्र.] भगवन्! जघन्य स्थिति वाले असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [५३६-१ उ.] गौतम! (उनके)अनन्त पर्याय कहे गए हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण ऐसा कहा जाता है कि जघन्य स्थिति वाले असंख्याप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं ? [उ.] गौतम! एक जघन्य स्थिति वाला असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्य स्थिति वाले असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से तुल्य है, वर्णादि तथा चतु:स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। [२] एवं उक्कोसठितीए वि। [५३६-२] इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के विषय में कहना चाहिए। [३] अजहण्णमणुक्कोसठितीए वि एवं चेव। नवरं ठितीए चउट्ठाणवडिते। [५३६-३ प्र.] मध्यम स्थिति वाले असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों के विषय में इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति की अपेक्षा चतु:स्थानपतित है। ५३७. [१] जहण्णठितीयाणं अणंतपदेसियाणं पुच्छा । गोयमा! अणंता।

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