Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
४४४]
[प्रज्ञापना सूत्र [उ.] गौतम! मध्यम अवगाहना वाला अनन्तप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे मध्यम अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहना की दृष्टि चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है और वर्णादि तथा अष्ट स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है।
५३२. [१] जहण्णठितीयाणं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं पुच्छा ! गोयमा! अणंता। से केणद्वेणं ?
गोयमा! जहण्णठितीए परमाणुपोग्गले जहण्णठितीयस परमाणुपोग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्टयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए तुल्ले, ठितीए तुल्ले, वण्णादि-दुफासेहिं य छट्ठाणवडिते।
[५३२-१ प्र.] भगवन्! जघन्य स्थिति वाले परमाणुपुद्गल के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [५३२-१ उ.] गौतम! (उनके)अनन्त पर्याय कहे हैं।
[प्र.] भगवन् ! किस कारण ऐसा कहा जाता है कि जघन्य स्थिति वाले परमाणुपुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं ?
[उ.] गौतम! एक जघन्य स्थिति वाला परमाणुपुद्गल, दूसरे जघन्य स्थिति वाले परमाणु पुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से तुल्य है तथा स्थिति की अपेक्षा से (भी) तुल्य है, एवं वर्णादि तथा दो स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है।
[२] एवं उक्कोसठितीए वि।
[५३२-२] इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले (परमाणुपुद्गलों के पर्यायों) के विषय में (समझना चाहिए।)
[३] अजहण्णमणुक्कोसठितीए वि एवं चेव। नवरं ठितीए चउट्ठाणवडिते।
[५३२-३ प्र.] मध्यम स्थिति वाले (परमाणुपुद्गलों के पर्यायों) के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है।
५३३. [१] जहण्णठितीयाणं दुपएसियाणं पुच्छा । गोयमा! अणंता। से केणटेणं भंते !
गोयमा! जहण्णठितीए दुपएसिते जहण्णठितीयस्स दुपएसियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्टयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए। जति हीणे पदेसहीणे, अह अब्भतिए पदेसब्भतिते, ठितीए तुल्ले, वण्णादि-चउप्फासेहिं य छट्टाणवडिते।
[५३३-१ प्र.] भगवन् ! जघन्य स्थिति वाले द्विप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ?