Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पांचवा विशेषपद (पर्यायपद)]
[४३५ गोयमा! एगसमयठितीए पोग्गले एगसमयठितीयस्स पोग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्ठयाए छट्ठाणवडिते, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए तुल्ले, वण्णादि-अट्ठफासेहि छट्ठाणवडिते।
[५१५ प्र.] भगवन् ! एक समय की स्थिति वाले पुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [५१५ उ.] गौतम! उनके अनन्त पर्याय कहे हैं।
[प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि एक समय की स्थिति वाले पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं ?
[उ.] गौतम! एक समय की स्थिति वाला एक पुद्गल, दूसरे एक समय की स्थिति वाले पुद्गल के द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से तुल्य है, वर्णादि तथा अष्ट स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है।
५१६. एवं जाव दससमयठिईए।
[५१६] इस प्रकार यावत् दस समय की स्थिति वाले पुद्गलों की पर्यायसम्बन्धी वक्तव्यता समझनी चाहिए।
५१७. संखेन्जसमयठितीयाणं एवं चेव। नवरं ठितीए दुट्ठाणवडिते। __ [५१७] संख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गलों का पर्यायविषयक कथन भी इसी प्रकार समझना चाहिए। विशेष यह है कि वह स्थिति की अपेक्षा से द्विस्थानपतित है।
५१८. असंख्येज्जसमयठितीयाणं एवं चेव। नवरं ठिईए चउट्ठाणवडिते।
[५१८] असंख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गलों का पर्यायविषयक कथन भी इसी प्रकार है। विशेषता यह है कि वह स्थिति की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है।
५१९. एगगुणकालगाणं पुच्छा। गोयमा! अणंता पज्जवा। से केणढेणं भंते एवं वुच्चति ?
गोयमा! एगगुणकालए पोग्गले एगगुणकालगस्स पोग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्ठयाए छट्ठाणवडिते, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए चउट्ठाणवडिते, कालवण्णपज्जवेहिं तुल्ले, अवसेसेहिं वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते, अट्ठहिं फासेहिं छट्ठाणवडिते।
[५१९ प्र.] भगवन् ! एकगुण काले पुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ?
[५१९ उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय कहे हैं। - [प्र.] भगवन्! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि एक गुण काले पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं ?
१. ग्रन्थाग्रम् ३०००