Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पांचवा विशेषपद (पर्यायपद)]
[४२१
की अपेक्षा से तुल्य है, तथा वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से, दो अज्ञानों और दो दर्शनों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है।
[२] एवं उक्कोसठितीए वि। नवरं दो णाणा, दो अण्णाणा, दो दंसणा।
[४९०-२] उत्कृष्ट स्थिति वाले मनुष्यों के (पर्यायों के विषय में) भी इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेष यह है कि (उनमें) दो ज्ञान, दो अज्ञान और दो दर्शन (पाए जाते) हैं।
[३] अजहण्णमणुक्कोसठितीए वि एवं चेव। नवरं ठितीए चउट्ठाणवडिते ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, आदिल्लेहिं चउनाणेहिं छट्ठाणवडिते, केवलनाणपज्जवेहिं तुल्ले, तिहिं अण्णाणेहिं तिहिं दंसणेहिं छट्ठाणवडिते, केवलदंसणपज्जवेहिं तुल्ले।
___ [४९०-३] मध्यमस्थिति वाले मनुष्यों का पर्यायविषयक कथन भी इसी प्रकार करना चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है, अवगाहना की दृष्टि से चतु:स्थानपतित है, तथा आदि के चार ज्ञानों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, केवलज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है, एवं तीन अज्ञानों और तीन दर्शनों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है तथा केवलदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है।
४९१. [१] जहण्णगुणकालयाणं भंते! मणुस्साणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा! अणंता पज्जवपण्णत्ता। से केणढेणं भंते! एवं वुच्चति ?
गोयमा! जहण्णगुणकालए मणूसे जहण्णगुणकालगस्स मणूसस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्ठयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए चउट्ठाणवडिते कालवण्णपज्जवेहिं तुल्ले, अवसेसेहिं वण्ण-गन्ध-रस-फासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते, चउहिं णाणेहिं छट्ठाणवडिते, केवलणाणपज्जवेहिं तुल्ले, तिहिं अण्णाणेहिं तिहिं दंसणेहिं छट्ठाणवडिते, केवलदसणपज्जवेहिं तुल्ले।
[४९१-१ प्र.] भगवन् ! जघन्यगुण काले मनुष्यों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [४९१ -१ उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय कहे हैं। [प्र.] भगवन्! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि जघन्यगुण काले मनुष्यों के अनन्त पर्याय हैं ?
[उ.] गौतम! एक जघन्यगुण काला मनुष्य दूसरे जघन्यगुण काले मनुष्य से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है, कृष्णवर्ण के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है; तथा अवशिष्ट वर्णों, गन्धों, रसों और स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है; चार ज्ञानों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, केवलज्ञान के पर्यायों को अपेक्षा से तुल्य है, तथा तीन अज्ञानों और तीन दर्शनों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है