Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 497
________________ ३९६] [प्रज्ञापना सूत्र असंखेन्जभागहीणे वा संखेन्जभागहीणे वा संखेजगुणहीणे वा असंखेजगुणहीणे वा, अह अब्भहिए असंखेजतिभागअब्भतिए वा संखेजतिभागअब्भतिए वा संखेज्जगुणअब्भतिए वा असंखेज्जगुणअब्भतिए वा, ठितीए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भतिए-जति हीणे असंखेज्जतिभागहीणे वा संखेजतिभागहीणे वा संखेज्जगुणहीणे वा असंखेन्जगुणहीणे वा, अह अब्भइए असंखेजतिभागअब्भइए वा संखेजतिभागअब्भहिए वा संखेजगुणअब्भहिए वा असंखेज्जगुणअब्भहिए वा, वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं तिहिं णाणेहिं तिहिं अण्णाणेहिं तिहिं दसणेहिं छट्ठाणवडिते, से तेणद्वेणं गोयमा! एवं वुच्चति अजहण्णुक्कोसोगाहणगाणं नेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता। [४५५-३ प्र.] भगवन् ! अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) अवगाहना वाले नैरयिकों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [४५५-३ उ.] गौतम! अनन्त पर्याय कहे हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि 'मध्यम अवगाहना वाले नैरयिकों के अनन्त पर्याय है ?' [उ.] गौतम! मध्यम अवगाहना वाला एक नारक, अन्य मध्य अवगाहना वाले नैरयिक से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक है। यदि हीन है तो, असंख्यातभाग हीन है अथवा संख्यातभाग हीन है, या संख्यातगुण हीन है, अथवा असंख्यातगुण हीन है। यदि अधिक है तो असंख्यातभाग अधिक है अथवा संख्यातभाग अधिक है, अथवा संख्यातगुण अधिक है, या असंख्यातगुण अधिक है। स्थिति की अपेक्षा से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य है, और कदाचित् अधिक है। यदि हीन है तो असंख्यातभाग हीन है, अथवा संख्यातभाग हीन है, अथवा संख्यातगुण हीन है, या असंख्यातगुण हीन है। यदि अधिक है तो असंख्यातभाग अधिक है अथवा संख्यातभाग अधिक है, या संख्यातगुण अधिक है, अथवा असंख्यातगुण अधिक है। वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से, तीनों ज्ञानों, तीन अज्ञानों और तीन दर्शनों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित (हीनाधिक) है। हे गौतम! इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि 'मध्यम अवगाहना वाले नैरयिकों के अनन्त पर्याय कहे हैं।' ४५६. [१] जहण्णठितीयाणं भंते! नेरइयाणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता । से केणढेणं भंते! एवं वुच्चइ जहण्णद्वितीयाणं नेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णद्वितीए नेरइए जहण्णद्वितीयस्स नेरइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्ठयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए तुल्ले, वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं तिहिं णाणेहिं तिहिं अण्णाणेहिं तिहिं दंसणेहि य छट्ठाणवडिते।

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