Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
३९४]
[प्रज्ञापना सूत्र [४५३] वाणव्यन्तर देव अवगाहना और स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित (हीनाधिक) कहे गए हैं तथा वर्ण आदि (के पर्यायों) की अपेक्षा से षट्स्थानपतित (हीनाधिक) हैं।
४५४. जोइसिय-वेमाणिया वि एवं चेव। णवरं ठितीए तिट्ठाणवडिता।
[४५४] ज्योतिष्क और वैमानिक देवों (के पर्यायों) की हीनाधिकता भी इसी प्रकार (पूर्वसूत्रानुसार समझनी चाहिए।) विशेषता यह है कि इन्हें स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित (हीनाधिक) समझना चाहिए।
विवेचन वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के अनन्त पर्यायों की प्ररूपणा – प्रस्तुत दो सूत्रों (४५३, ४५४) में वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों के अनन्त पर्याय बताने हेतु उनकी यथायोग्य चतुःस्थानपतित षट्स्थानपतित तथा त्रिस्थानपतित न्यूनाधिकता का प्रतिपादन किया गया
__वाणव्यन्तरों की चतुःस्थानपतित तथा ज्योतिष्क-वैमानिकों की त्रिस्थानपतित हीनाधिकता - वाणव्यन्तरों की स्थति जघन्य १० हजार वर्ष की, उत्कृष्ट एक पल्योपम की होती है, अतः वह भी चतुःस्थानपतित हो सकती है, किन्तु ज्योतिष्कों और वैमानिकों की स्थिति में त्रिस्थान पतित हीनाधिकता ही होती है; क्योंकि ज्योतिष्कों की स्थिति जघन्य पल्योपम के आठवें भाग की और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक पल्योपम की है। अतएव उनमें असंख्यातगुणी हानि-वृद्धि सम्भव नहीं है। वैमानिकों की स्थिति जघन्य पल्योपम की और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है। एक सागरोपम दस कोडाकोड़ी पल्योपम का होता है। अतएव वैमानिकों में भी संख्यातगुणी हानि वृद्धि सम्भव नहीं है। इसी कारण ज्योतिष्क और वैमानिकदेव स्थिति को अपेक्षा से त्रिस्थानपतित हीनाधिक ही होते हैं। विभिन्न अपेक्षाओं से जघन्यादियुक्त अवगाहनादि वाले नारकों के पर्याय ४५५. [१] जहण्णोगाहणगाणं भंते! नेरइयाणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ?
गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। से केणढेणं भंते! एवं वुच्चति जहण्णोगाहणगाणं नेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?
गोयमा! जहण्णोगाहणए नेरइए जहण्णोगाहणगस्स नेरइयस्स दवट्ठयाए तुल्ले, पएसट्ठयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए तुल्ले, ठितीए चउट्ठाणवडिते, वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं तिहिं णाणेहिं तिहिं अण्णाणेहिं तिहिं दंसणेहि य छट्ठाणवडिते।
[४५५ प्र.] भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले नैरयिकों के कितने पयार्य कहे गए है ?
[४५५ उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय कहे हैं। १. पण्णवणासुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त), पृ. १४० २. प्रज्ञापनासूत्र म. वृत्ति, पत्रांक १८६