Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापना सूत्र गोयमा! जहण्णेणं पलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेणं पणपण्णं पलिओवमाई अंतोमुहुत्तूणाई।
[४०८-३ प्र.] भगवन्! पर्याप्त वैमानिक देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[४०८-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम एक पल्यापम की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पचपन पल्योपमों की है।
४०९. [१] सोहम्मे णं भंते! कप्पे देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं दो सागरावमाइं।
[४०९-१ प्र.] भगवन् ! सौधर्मकल्प (देवलोक) में, देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ?
[४०९-१ उ.] गौतम! जघन्य एक पल्योपम की है और उत्कृष्ट दो सागरोपम की है। [२] सोहम्मे कप्पे अपज्जत्तदेवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [४०९-२ प्र.] भगवन् ! सौधर्मकल्प में अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [४०९-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] सोहम्मे कप्पे पज्जत्तयाणं देवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं पलिओवमं अंतोमुहत्तूणं, उक्कोसेणं दो सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई। [४०९-३ प्र.] भगवन् ! सौधर्मकल्प में पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है?
[४०९-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम एक पल्योपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम दो सागरोपम की है।
४१०. [१] सोहम्मे कप्पे देवीणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं पलिओवमं, उक्कोसेण पण्णासं पलिओवमाइं। [४१०-१ प्र.] भगवन् ! सौधर्मकल्प में देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [४१०-१ उ.] गौतम! जघन्य एक पल्योपम की है और उत्कृष्ट पचास पल्यापमों की है। [२] सोहम्मे कप्पे अपज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेणं वि अंतोमहत्तं।
[४१०-२ प्र.] भगवन् ! सौधर्मकल्प में अपर्याप्तक देवियों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ?
[४१०-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है।
१. ग्रन्थाग्रम् २५००