Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापना सूत्र
४३१. [१] मज्झिममज्झिमगेवेज्जगदेवाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणणं छव्वीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं सत्तावीसं सागरोवमाइं।
[४३१-१ प्र.] भगवन् ! मध्यम-मध्यम (बीच के त्रिक के बिचले) ग्रैवेयक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ?
[४३१-१ उ.] गौतम! जघन्य छव्वीस सागरोपम की और उत्कृष्ट सत्ताईस सागरोपम की है। [२] मज्झिममज्झिमगेवेज्जगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं।
[४३१-२ प्र.] भगवन् ! मध्यम-मध्यम ग्रैवेयक अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[४३१-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] मज्झिममज्झिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा।
गोयमा! जहण्णेणं छव्वीसं सागरोवमाइं अंतोमुहत्तूणाई, उक्कोसेणं सत्तावीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई।
[४३१-३ प्र.] भगवन्! मध्यम-मध्यम ग्रैवेयक पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही है।
[४३१-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम छब्बीस सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम सत्ताईस सागरोपम की है।
४३२. [१] मज्झिमउवरिमगेवेज्जाणं देवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं सत्तावीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं अट्ठावीसं सागरोवमाइं ।
[४३२-१ प्र.] भगवन्! मध्यम-उपरितन (बीच के त्रिक में सबसे ऊपर वाले) ग्रैवेयक देवों की कितने काल की स्थिति कही गई है ?
[४३२-१ उ.] गौतम! जघन्य सत्ताईस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट अट्ठाईस सागरोपम की है। [२] मज्झिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
[४३२-२ प्र.] भगवन्! मध्यम-उपरितन ग्रैवेयक अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ?
[४३२-२ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] मज्झिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा ।