Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापना सूत्र या संख्यात भाग अधिक है, अथवा संख्यातगुण अधिक है। वर्णों (के पर्यायों) गन्धों, रसों और स्पर्शों (के पर्यायों) की अपेक्षा से, मति-अज्ञान-पर्यायों, श्रुत-अज्ञानपर्यायों एवं अचक्षुदर्शनपर्यायों की अपेक्षा से (एक पृथ्वीकायिक दूसरे पृथ्वीकायिक से) षट्स्थानपतित है।
४४४. आउकाइयाणं भंते! केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति आउकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?
गोयमा! आउकाइए आउकाइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्ठताए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए तिट्ठाणवडिते, वण्ण-गंध-रस-फास-मतिआण्णाण-सुतअण्णाणअचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते।
[४४४ प्र.] भगवन् ! अप्कायिक जीवों के कितने पर्याय कहे हैं ? [४४४ उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय कहे गए है। . [प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि अप्कायिक जीवों के अनन्त पर्याय हैं?
[उ.] गौतम! एक अप्कायिक दूसरे अप्कायिक से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की . अपेक्षा से (भी) तुल्य है, (किन्तु) अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित (हीनाधिक) है, स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित (हीनाधिक) है। वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान और अचक्षुदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित (हीनाधिक) है।
४४५. तेउक्काइयाणं पुच्छा । गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। से केणट्टेणं भंते! एवं वुच्चति तेउकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?
गोयमा! तेउक्काइए तेउक्काइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्टयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए तिट्ठाणवडिते, वण्ण-गंध-रस-फास-मतिअण्णाण सुयअण्णाणअचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते।
[४४५ प्र.] भगवन् ! तेजस्कायिक जीवों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [४४५ उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय कहे गए है। [प्र.] भगवन् ! ऐसा किस हेतु से कहा जाता है कि तेजस्कायिक जीवों के अनन्त पर्याय हैं?
[उ.] गौतम! एक तेजस्कायिक, दूसरे तेजस्कायिक से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से (भी) तुल्य है, (किन्तु) अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित (हीनाधिक) है, स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित (हीनाधिक) है, तथा वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, मति-अज्ञान, श्रुतज्ञान और अचक्षुदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित (हीनाधिक) है।