Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पांचवा विशेषपद (पर्यायपद)]
[३८९ ४४६. वाउक्काइयाणं पुच्छा ।
गोयमा! वाउकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।से केणढेणं भंते! एवं वुच्चति वाउकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ? ___ गोयमा! वाउकाइए वाउकाइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्ठयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए तिट्ठाणवडिते, वण्ण-गंध-रस-फास-मतिअण्णाण-सुयअण्णाणअचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते।
[४४६ प्र.] भगवन् ! वायुकायिक जीवों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [४४६ उ.] गौतम! (वायुकायिक जीवों के) अनन्त पर्याय कहे गए हैं।
[प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि 'वायुकायिक जीवों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं?' ____ [उ.] गौतम! एक वायुकायिक, दूसरे वायुकायिक से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है (किन्तु) अवगाहना की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित (हीनाधिक) है। स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित (हीनाधिक) है। वर्ण,गन्ध, रस, स्पर्श तथा मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान और अचक्षुदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित (हीनाधिक) है।
४४७. वणप्फइकाइयाणं भंते! केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? __गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। से केणठेणं भंते! एवं वुच्चति वणप्फइकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?
गोयमा! वणप्फइकाइए वणण्फइकाइयस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्टयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवड़िते, ठितीए तिट्ठाणवडिए, वण्ण-गंध-रस-फास-मतिअण्णाण-सुयअण्णाणअचखुदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते, से तेणट्टेणं, गोयमा! एवं वुच्चति वणस्सतिकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।
[४४७ प्र.] भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीवों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [४४७ उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय कहे गए हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि वनस्पतिकायिक जीवों के अनन्त पर्याय
[उ.] गौतम! एक वनस्पतिकायिक दूसरे वनस्पतिकायिक से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से (भी) तुल्य है, (किन्तु) अवगाहना की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है तथा स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित है किन्तु वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के तथा मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान और अचक्षुदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित (हीनाधिक) है। इस कारण से गौतम! ऐसा कहा जाता है कि वनस्पतिकायिक जीवों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।