Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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३८६]
[प्रज्ञापना सूत्र से केणढेणं भंते! एवं वुच्चइ असुरकुमाराणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?
गोयमा! असुरकुमारे असुरकुमारस्स दवट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्ठयाए तुल्ले ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, ठितीए चउट्ठाणवडिए, कालवण्णपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए, एवं णीलवण्णपज्जवेहि लोहियवण्णपज्जवेहिं हालिदवण्णपज्जवेहिं सुक्किलवण्णपज्जवेहिं, सुन्भिगंधपज्जवेहिं दुब्भिगंधपज्जवेहिं तित्तरसपज्जवेहिं कडुयरसपज्जवेहिं कसायरसपज्जवेहिं अंबिलरसपज्जवेहि महुररसपज्जवेहिं, कक्खडफासपज्जवेहिं मउयफासपज्जवेहिं गरुयफासपज्जवेहिं लहुयफासपज्जवेहिं सीतफासपज्जवेहिं उसिणफासपज्जवेहिं निद्धफासपज्जवेहिं लुक्खफासपज्जवेहिं, आभिणिबोहियणाणपज्जवेहिं सुतणाणपज्जवेहिं ओहिणाणपज्जवेहिं , मतिअण्णाणपज्जवेहि सुयअण्णणपज्जवेहिं विभंगणाणपज्जवेहि, चक्खुदंसणपज्जवेहिं अचक्खुदंसणपज्जवेहिं
ओहिदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते, से तेणढेणं गोयमा! एवं वुच्चति असुरकुमाराणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।
[४४१ प्र.] भगवन् ! असुरकुमारों के कितने पर्याय कहे हैं ? [४४१ उ.] गौतम! उनके अनन्तपर्याय कहे हैं। [प्र.] भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि 'असुरकुमारों के पर्याय अनन्त हैं ?'
[उ.] गौतम! एक असुरकुमार दूसरे असुरकुमार से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है; (किन्तु) अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, कृष्णवर्णपर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है; इसी प्रकार नीलवर्ण-पर्यायों, रक्त (लोहित) वर्णपर्यायों, हारिद्रवर्ण-पर्यायों, शुक्लवर्ण-पर्यायों की अपेक्षा से; तथा सुगन्ध और दुर्गन्ध के पर्यायों की अपेक्षा से; तिक्तरस-पर्यायों, कटुरस-पर्यायों, कषायरस-पर्यायों आम्लरस-पर्यायों एवं मधुररस-पर्यायों की अपेक्षा से; तथा कर्कशस्पर्श-पर्यायों, मृदुस्पर्श-पर्यायों, गुरुस्पर्श-पर्यायों, लघुस्पर्श-पर्यायों, शीतस्पर्शपर्यायों, उष्णस्पर्श-पर्यायों, स्निग्धस्पर्श-पर्यायों, और रूक्षस्पर्श-पर्यायों की अपेक्षा से तथा आभिनिबोधिकज्ञान-पर्यायों, श्रुतज्ञान-पर्यायों, अवधिज्ञान-पर्यायों, मति-अज्ञानपर्यायों, श्रुत-अज्ञान-पर्यायों, विभंगज्ञान-पर्यायों, चक्षुदर्शनपर्यायों, अचक्षुदर्शन-पर्यायों और अवधि-दर्शन-पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित (हीनाधिक) है। हे गौतम! इसी कारण से ऐसा कहा जाता है कि असुरकुमारों के पर्याय अनन्त कहे हैं।
४४२. एवं जहा नेरइया जहा असुरकुमारा तहा नागकुमारा वि जाव थणियकुमारा।
[४४२] इसी प्रकार जैसे नैरयिकों के (अनन्तपर्याय कहे गए हैं,) और असुरकुमारों के कहे हैं, उसी प्रकार नागकुमारों से लेकर यावत् स्तनितकुमारों के (अनन्तपर्याय कहने चाहिए।)
विवेचन – असुरकुमार आदि भवनपतिदेवों के अनन्तपर्याय – प्रस्तुत दो सूत्रों (४४१४४२) में असुरकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक के भवनपतियों के अनन्तपर्यायों का, नैरयिकों के अतिदेशपूर्वक सयुक्तिक निरूपण किया गया है।