Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ स्थितिपद ]
गोयमा ! जहणेणं एक्कतीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ।
[४३६-१ प्र.] भगवन् ! विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित विमानों में देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ?
[४३६ - १ उ.] गौतम! ( इन सब देवों की स्थिति) जघन्य इकतीस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है ।
[ ३७१
[२] विजय- वेजयंत- जयंत अपराजियदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा ।
गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ।
[४३६-२ प्र.] भगवन् ! विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित विमानों में (स्थित) अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[४३६-२ उ.] गौतम! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है ।
[३] विजय- वेजयंत- जयंत अपराजियदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा ।
गोयमा ! जहणणेणं एक्कतीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई ।
[४३६-३ प्र.] भगवन्! विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित विमानों में स्थित पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही है ?
[४३६-३ उ.] गौतम! ( इनकी स्थिति) जघन्य अन्तमुहूर्त्त कम इकतीस सागरोपम की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम तेतीस सागरोपम की है।
४३७. [ १ ] सव्वट्ठसिद्धगदेवाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ?
गोयमा ! अजहण्णमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता ?
[४३७-१ प्र.] भगवन्! सर्वार्थसिद्ध विमानवासी देवों की कितने काल तक की स्थिति कही गई
है ?
[४३७-१ उ.] गौतम! अजघन्य अनुत्कृष्ट ( जघन्य और उत्कृष्ट के भेद से रहित ) तेतीस सागरोपम की स्थिति कही गई है।
[ २ ] सव्वट्ठसिद्धगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा ।
गोमा ! जहण व उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ।
[४३७-२ प्र.] भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध विमानवासी अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ?
[४३७-२ उ.] गौतम! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] सव्वट्टसिद्धगदेवाणं पज्जत्ताणं [ भंते! ] केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ?