Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ स्थितिपद]
[३६९ गोयमा! जहण्णेणं सत्तावीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं अट्ठावीसं सागरोवमाई अंतोमुहत्तूणाई।
[४३२-३ प्र.] भगवन् ! मध्यम-उपरितन ग्रैवेयक पर्याप्तक देवों की कितने काल की स्थिति कही है ?
[४३२-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम सत्ताईस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम अट्ठाईस सागरोपम की है।
४३३. [१] उवरिमहेट्ठिमगेवेज्जगदेवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अट्ठावीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं एगूणतीसं सागरोवमाई।
[४३३-१ प्र.] भगवन् ! उपरितन-अधस्तन (ऊपर के त्रिक के निचले) ग्रैवेयक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ?
[४३३-१ उ.] गौतम! जघन्य अट्ठाईस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट उनतीस सागरोपम की है। [२] उवरिमहेट्ठिमगेवेज्जगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ।
[४३३-२ प्र.] भगवन् ! उपरितन-अधस्तन ग्रैवेयक अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[४३३-२ उ.] गौतम! जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] उवरिमहेट्ठिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा ।
गोयमा! जहण्णेणं अट्ठावीसं सागरोवमाइं, अंतोमुहत्तूणाई, उक्कोसेणं एगूणतीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई। ___ [४३३-३ प्र.] भगवन् ! उपरितन-अधस्तन ग्रैवेयक पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
__ [४३३-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम अट्ठाईस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त . कम उनतीस सागरोपम की है।
४३४. [१] उवरिममज्झिमगेवेज्जगदेवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं एगूणतीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमाइं।
[४३४-१ प्र.] भगवन् ! उपरितन-मध्यम (ऊपर के त्रिक में बीच वाले) ग्रैवेयक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ?
[४३४-१ उ.] गौतम! जघन्य उनतीस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट तीस सागरोपम की है। [२] उवरिममज्झिमगेवेज्जगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा ।