Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ स्थितिपद]
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[४२९-१ उ.] गौतम! जघन्य चौवीस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट पच्चीस सागरोपम की है। [२] हेट्ठिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं ।
[४२९-२ प्र.] भगवन् ! अधस्तन-उपरितन ग्रैवेयक अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ?
[४२९-२ उ.] गौतम! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की है। [३] हेट्ठिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा ।
गोयमा! जहण्णेणं चउवीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं पणुवीसं सागरोवमाई अंतोमुहत्तूणाई।
[४२९-३ प्र.] भगवन् ! अधस्तन-उपरितन ग्रैवेयक पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? ___[४२९-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम चौवीस सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पच्चीस सागरोपम की है।
४३०. [१] मज्झिमहेट्ठिमगेवेज्जगदेवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं पणुवीणं सागरोवमाई, उक्कोसेणं छव्वीसं सागरोवमाइं।
[४३०-१ प्र.] भगवन् ! मध्यम-अधस्तन (बीच के त्रिक में सबसे निचले) ग्रैवेयक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ?
[४३०-१ उ.] गौतम! जघन्य पच्चीस सागरोपम की और उत्कृष्ट छव्वीस सागरोपम की है। [२] मज्झिमहेट्ठिमगेवेज्जगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
[४३०-२ प्र.] भगवन्! मध्यम-अधस्तन ग्रैवेयक अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ?
[४३०-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] मज्झिमहेट्ठिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा.।
गोयमा! जहण्णेणं पणुवीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं छव्वीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई।
[४३०-३ प्र.] भगवन्! मध्यम-अधस्तन ग्रैवेयक पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही
___ [४३०-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पच्चीस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम छव्वीस सागरोपम की है।