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________________ ३६८] [प्रज्ञापना सूत्र ४३१. [१] मज्झिममज्झिमगेवेज्जगदेवाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणणं छव्वीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं सत्तावीसं सागरोवमाइं। [४३१-१ प्र.] भगवन् ! मध्यम-मध्यम (बीच के त्रिक के बिचले) ग्रैवेयक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [४३१-१ उ.] गौतम! जघन्य छव्वीस सागरोपम की और उत्कृष्ट सत्ताईस सागरोपम की है। [२] मज्झिममज्झिमगेवेज्जगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [४३१-२ प्र.] भगवन् ! मध्यम-मध्यम ग्रैवेयक अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [४३१-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] मज्झिममज्झिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं छव्वीसं सागरोवमाइं अंतोमुहत्तूणाई, उक्कोसेणं सत्तावीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई। [४३१-३ प्र.] भगवन्! मध्यम-मध्यम ग्रैवेयक पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही है। [४३१-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम छब्बीस सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम सत्ताईस सागरोपम की है। ४३२. [१] मज्झिमउवरिमगेवेज्जाणं देवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं सत्तावीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं अट्ठावीसं सागरोवमाइं । [४३२-१ प्र.] भगवन्! मध्यम-उपरितन (बीच के त्रिक में सबसे ऊपर वाले) ग्रैवेयक देवों की कितने काल की स्थिति कही गई है ? [४३२-१ उ.] गौतम! जघन्य सत्ताईस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट अट्ठाईस सागरोपम की है। [२] मज्झिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। [४३२-२ प्र.] भगवन्! मध्यम-उपरितन ग्रैवेयक अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [४३२-२ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] मज्झिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा ।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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