Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापना सूत्र [४२३-३ प्र.] भगवन्! आनतकल्प में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई
[४२३-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम अठारह सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम उन्नीस सागरोपम की है।
४२४. [१] पाणए कप्पे देवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं एगूणवीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमाइं । [४२४-१ प्र.] भगवन्! प्राणतकल्प में देवों की स्थिति कितने काल तक की कही है ? [४२४-१ उ.] गौतम! जघन्य उन्नीस सागरोपम की है और उत्कृष्ट वीस सागरोपम की है। [२] पाणए अपज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमहत्तं । [४२४-२ प्र.] भगवन्! प्राणतकल्प में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [४२४-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पाणए पज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा ।
गोयमा! जहण्णेणं एगूणवीसं सागरोवमाई अंतोमुहत्तूणाई, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई।
[४२४-३ प्र.] भगवन् ! प्राणतकल्प में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही है ?
[४२४-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम उन्नीस सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम वीस सागरोपम की है।
४२५. [१] आरणे देवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं वीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं एक्कवीसं सागरोवमाई। [४२५-१ प्र.] भगवन्! आरणकल्प में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [४२५-१ उ.] गौतम! जघन्य वीस सागरोपम की और उत्कृष्ट इक्कीस सागरोपम की है। [२] आरणे अपज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। [४२५-२ प्र.] भगवन्! आरणकल्प में अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही है ? [४२५-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] आरणे पज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा।
गोयमा! जहण्णेणं वीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं एक्कवीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई।