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________________ ३६४] [प्रज्ञापना सूत्र [४२३-३ प्र.] भगवन्! आनतकल्प में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई [४२३-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम अठारह सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम उन्नीस सागरोपम की है। ४२४. [१] पाणए कप्पे देवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं एगूणवीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमाइं । [४२४-१ प्र.] भगवन्! प्राणतकल्प में देवों की स्थिति कितने काल तक की कही है ? [४२४-१ उ.] गौतम! जघन्य उन्नीस सागरोपम की है और उत्कृष्ट वीस सागरोपम की है। [२] पाणए अपज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमहत्तं । [४२४-२ प्र.] भगवन्! प्राणतकल्प में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [४२४-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पाणए पज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं एगूणवीसं सागरोवमाई अंतोमुहत्तूणाई, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई। [४२४-३ प्र.] भगवन् ! प्राणतकल्प में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही है ? [४२४-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम उन्नीस सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम वीस सागरोपम की है। ४२५. [१] आरणे देवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं वीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं एक्कवीसं सागरोवमाई। [४२५-१ प्र.] भगवन्! आरणकल्प में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [४२५-१ उ.] गौतम! जघन्य वीस सागरोपम की और उत्कृष्ट इक्कीस सागरोपम की है। [२] आरणे अपज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। [४२५-२ प्र.] भगवन्! आरणकल्प में अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही है ? [४२५-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] आरणे पज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं वीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं एक्कवीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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