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________________ चतुर्थ स्थितिपद ] [ ३६३ [४२१-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम चौदह सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम सत्रह सागरोपम की है । ४२२. [ १ ] सहस्सारे देवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं सत्तरस सागरोवमाई, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाई | [४२२ - १ प्र.] भगवन् ! सहस्रारकल्प में देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [४२२-१ उ.] गौतम! जघन्य सत्तरह सागरोपम की और उत्कृष्ट अठारह सागरोपम की है । [२] सहस्सारे पज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं । [४२२-२ प्र.] भगवन् ! सहस्रारकल्प में अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [४२२-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है । [३] सहस्सारे पज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा ! जहणेणं सत्तरस सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई । [४२२-३ प्र.] भगवन् ! सहस्रारकल्प में पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [४२२-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम सत्तरह सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम अठारह सागरोपम की है । ४२३. [१] आणए देवाणं पुच्छा । गोमा ! जहणेणं अट्ठारस सागरोवमाई, उक्कोसेणं एगूणवीसं सागरोवमाई । [४२३ - १ प्र.] भगवन्! आनतकल्प के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [४२३ - १ उ.] गौतम! जघन्य अठारह सागरोपम की और उत्कृष्ट उन्नीस सागरोपम की है । [ २ ] आणए अपज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेणं वि अंतोमुहुत्तं । [४२३-२ प्र.] भगवन्! आनतकल्प में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही है ? [४२३-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है । [ ३ ] आणए पज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा । गोयमा! जहणणेणं अट्ठारस सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं एगूणवीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई ।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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