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चतुर्थ स्थितिपद ]
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[४२१-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम चौदह सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम सत्रह सागरोपम की है ।
४२२. [ १ ] सहस्सारे देवाणं पुच्छा ।
गोयमा! जहण्णेणं सत्तरस सागरोवमाई, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाई |
[४२२ - १ प्र.] भगवन् ! सहस्रारकल्प में देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [४२२-१ उ.] गौतम! जघन्य सत्तरह सागरोपम की और उत्कृष्ट अठारह सागरोपम की है । [२] सहस्सारे पज्जत्ताणं पुच्छा ।
गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ।
[४२२-२ प्र.] भगवन् ! सहस्रारकल्प में अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई
है ?
[४२२-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है ।
[३] सहस्सारे पज्जत्ताणं पुच्छा ।
गोयमा ! जहणेणं सत्तरस सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई ।
[४२२-३ प्र.] भगवन् ! सहस्रारकल्प में पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई
है ?
[४२२-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त कम सत्तरह सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम अठारह सागरोपम की है ।
४२३. [१] आणए देवाणं पुच्छा ।
गोमा ! जहणेणं अट्ठारस सागरोवमाई, उक्कोसेणं एगूणवीसं सागरोवमाई ।
[४२३ - १ प्र.] भगवन्! आनतकल्प के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[४२३ - १ उ.] गौतम! जघन्य अठारह सागरोपम की और उत्कृष्ट उन्नीस सागरोपम की है । [ २ ] आणए अपज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा ।
गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेणं वि अंतोमुहुत्तं ।
[४२३-२ प्र.] भगवन्! आनतकल्प में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही है ?
[४२३-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है ।
[ ३ ] आणए पज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा ।
गोयमा! जहणणेणं अट्ठारस सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं एगूणवीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई ।