Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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३५४ ]
[ प्रज्ञापना सूत्र
४०५. [ १ ] ताराविमाणे देवाणं पुच्छा ।
गोयमा ! जहणेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं चउभागपलिओवमं ।
[४०५ - १ प्र.] भगवन् ! ताराविमान में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [४०५-१ उ.] गौतम! जघन्य पल्योपम के आठवें भाग की और उत्कृष्ट चौथाई पल्योपम की है। [२] ताराविमाणे अपज्जत्तदेवाणं पुच्छा ।
गोयमा ! जहणणेण वि उक्कोसेणं वि अंतोमुहुत्तं ।
[४०५-२ प्र.] भगवन्! ताराविमान में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [४०५-२ उ.] गौतम! ( उनकी स्थिति) जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है । [३] ताराविमाणे पज्जत्तदेवाणं पुच्छा ।
गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेणं चउभागपंलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं ।
[४०५-३ प्र.] भगवन्! ताराविमान में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [४०५-३ उ.] गौतम! जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त कम पल्योपम का आठवाँ भाग है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम चौथाई पल्योपम की है ।
४०६. [ १ ] ताराविमाणे देवीणं पुच्छा ।
गोयमा! जहणणेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं सातिरेगं अट्ठभागपलिओवमं । [४०६ - १ प्र.] भगवन् ! ताराविमान में देवियों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [४०६-१ उ.] गौतम! जघन्य पल्योपम का आठवाँ भाग और उत्कृष्ट पल्योपम के आठवें भाग से कुछ अधिक की है।
[२] ताराविमाणे अपज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा ।
गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ।
[४०६-२ प्र.] भगवन्! ताराविमान में अपर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[४०६-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है।
[३] ताराविमाणे पज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा ।
गोयमा! जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेणं सातिरेगं अट्ठभागपलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं ।
[४०६-३ प्र.] भगवन् ! ताराविमान में पर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[४०६-३ उ.] गौतम! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त कम पल्योपम के आठवें भाग की है और उत्कृष्टतः अन्तर्मुहूर्त्त कम पल्योपम के आठवें भाग से कुछ अधिक है।