Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापना सूत्र
राक्षस और (७) ब्रह्मराक्षस। भूत नौ प्रकार के होते हैं- (१) सुरूप, (२) प्रतिरूप, (३) अतिरूप, (४) भूतोत्तम, (५) स्कन्द, (६) महास्कन्द, (७) महावेग, (८) प्रतिच्छन्न और (९) आकाशग। पिशाच सोलह प्रकार के होते हैं-(१) कूष्माण्ड, (२) पटक, (३) सुजोष, (४) आह्रिक, (५) काल, (६) महाकाल, (७) चोक्ष, (८) अचोक्ष, (९) तालपिशाच, (१०) मुखरपिशाच, (११) अधस्तारक, (१२) देह, (१३) विदेह, (१४) महादेह, (१५) तृष्णीक और (१६) वनपिशाच।
ज्योतिष्क देवों का स्वरूप-जो लोक को द्योतित-ज्योतित-प्रकाशित करते हैं वे ज्योतिष्क कहलाते हैं। अथवा जो द्योतित करते हैं, वे ज्योतिष्-विमान हैं, उन ज्योतिर्विमानों में रहने वाले देव ज्योतिष्क देव कहलाते हैं। अथवा जो मस्तक के मुकुटों से आश्रित प्रभामण्डलसदृश सूर्यमण्डल आदि के द्वारा प्रकाश करते हैं, वे सूर्यादि ज्योतिष्कदेव कहलाते हैं। सूर्यदेव के मुकुट के अग्रभाग में सूर्य के आकार का, चन्द्रदेव के मुकुट के अग्रभाग में चन्द्र के आकार का, ग्रहदेव के मुकुट के अग्रभाग में ग्रह के आकार का, नक्षत्रदेव के मुकुट के अग्रभाग में नक्षत्र के आकार का और तारकदेव के मुकुट के अग्रभाग में तारक के आकार का चिह्न होता है। इससे वे प्रकाश करते हैं।
वैमानिक देवों का स्वरूप-वैमानिक देव दो प्रकार के होते हैं—(१) कल्पोपग या कल्पोपपन्न और (२) कल्पातीत। कल्पोपपन्न का अर्थ है—कल्प यानी आचार-अर्थात्-इन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रिंस आदि का व्यवहार और मर्यादा। उक्त कल्प से युक्त व्यवहार जिनमें हो, वे देव कल्पोपपन्न कहलाते हैं
और जिनमें ऐसा कल्प न हो, वे कल्पातीत कहलाते हैं। सौधर्म आदि देव कल्पोपपन्न और नौ ग्रैवेयकं तथा पांच अनुत्तरौपपातिक देव कल्पातीत कहलाते हैं। लोकपुरुष की ग्रीवा पर स्थित होने से ये विमान ग्रैवेयक कहलाते हैं। अनुत्तर का अर्थ है-सर्वोच्च एवं सर्वश्रेष्ठ विमान। उन अनुत्तर विमानों में उपपात यानी जन्म होने के कारण ये देव अनुत्तरौपपातिक कहलाते हैं।
॥ प्रज्ञापना सूत्रः प्रथम प्रज्ञापनापद समाप्त॥