Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापना सूत्र वाली हैं, क्योंकि मेरु आदि की वापी आदि में भी पंचेन्द्रिय स्त्रियाँ विद्यमान हैं। उनका क्षेत्र अल्प है। अतएव वे सबसे कम कही गई हैं, इनकी अपेक्षा ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में (ऊर्ध्वलोक और तिर्यग्लोक के दो प्रतरों को स्पर्श करने वाली) तिर्यंचस्त्रियाँ असंख्यातगुणी हैं। इसका कारण यह है कि सहस्रार देवलोक तक के देव, गर्भजपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च स्त्रियों में उत्पन्न हो सकते हैं और शेष काया के जीव भी उनमें उत्पन्न हो सकते हैं। जब सहस्रार देवलोक तक के देव या शेष काया के जीव ऊर्ध्वलोक से तिर्यक्लोक में पंचेन्द्रिय तिर्यंचस्त्री के रूप में उत्पन्न होने वाले होते हैं, तब वे तिर्यंचस्त्री की आयु का वेदन करते हैं। इसके अतिरिक्त तिर्यक्लोकवर्ती पंचेन्द्रिय-तिर्यंचस्त्रियाँ जब ऊर्ध्वलोक में देवरूप से या अन्य किसी रूप में उत्पन्न होने वाली होती हैं, तब वे मारणान्तिक समुद्घात करके अपने उत्पत्तिदेश तक अपने आत्मप्रदेशों को फैलाती हैं। उस समय वे पूर्वोक्त दोनों प्रतरों को स्पर्श करती हैं। उस समय वे तिर्यंचयोनिक स्त्रियाँ कहलाती हैं, अतएव असंख्यातगुणी कही गई हैं। इनकी अपेक्षा त्रैलोक्य में त्रिलोक का स्पर्श करने वाली स्त्रियाँ तिर्यंचस्त्रियाँ संख्यातगुणी हैं। जब अधोलोक से भवनवासी, वाणव्यन्तर, नैरयिक तथा अन्यकायों के जीव ऊर्ध्वलोक में पंचेन्द्रियतिर्यंचस्त्री के रूप में उत्पन्न होते हैं, अथवा ऊर्ध्वलोक से कोई देवादि अधोलोक में तिर्यंचस्त्री के रूप में उत्पन्न होते हैं और वे समुद्घात करके अपने आत्मप्रदेशों को दण्डरूप में फैलाते हुए तीनों लोकों का स्पर्श करते हैं। ऐसे जीव बहुत हैं, अतएव त्रैलोक्य में तिर्यंचस्त्री को संख्यातगुणी कहना सुसंगत है। इनकी अपेक्षा अधोलोक-तिर्यक्लोक का स्पर्श करने वाली तिर्यग्योनिकस्त्रियाँ संख्यातगुणी अधिक हैं। बहुतसे नैरयिक आदि समुद्घात किये बिना ही तिर्यक्लोक में तिर्यञ्चपंचेन्द्रियस्त्री के रूप में उत्पन्न होते हैं; तथा तिर्यग्लोकवर्ती जीव अधोलौकिक ग्रामों में तिर्यंचस्त्री के रूप में उत्पन्न होते हैं, उस समय वे पूर्वोक्त दो प्रतरों का स्पर्श करते हैं और तिर्यंचस्त्री के आयुष्य का वेदन करते हैं, अत: उन्हें संख्यातगुणी कहा है। इनकी अपेक्षा भी अधोलोक में अर्थात्-अधोलोक के प्रतर में विद्यमान तिर्यञ्चस्त्रियाँ संख्यातगुणी हैं। अधोलौकिकग्राम और सभी समुद्र एक हजार योवन अवगाह वाले हैं। अतः नौ सौ योजन से नीचे मत्सी आदि तिर्यञ्चयोनिकस्त्रियों के स्वस्थान होने से वे प्रचुर संख्या में हैं। इस कारण उन्हें संख्यातगुणी कहा है। उनका क्षेत्र भी संख्यातगुणा अधिक है। अधोलोक की अपेक्षा तिर्यक्लोक में तिर्यञ्चस्त्रियाँ संख्यातगुणी अधिक हैं। (३) मनुष्यगतिविषयक अल्पबहुत्व क्षेत्रापेक्षया विचार करने पर त्रैलोक्य में (त्रिलोकस्पर्शी) मनुष्य सबसे कम हैं, क्योंकि ऊर्ध्वलोक से अधोलौकिक ग्रामों में उत्पन्न होने वाले और मारणान्तिक समुद्घात करने वालों में से कोई-कोई समुद्घातवश बाहर निकाले हुए स्वात्मप्रदेशों से तीनों लोकों का स्पर्श करते हैं। कोई-कोई वैक्रिय या आहारक समुद्घात को प्राप्त होकर विशेष प्रयत्न के द्वारा बहुत दूर तक ऊपर और नीचे अपने आत्मप्रदेशों को फैलाते हैं, केवली-समुद्घात को प्राप्त थोड़े से मानव तीनों लोकों को स्पर्श करते हैं। इस कारण सबसे कम मनुष्य त्रिलोक में हैं। उनकी अपेक्षा ऊर्ध्वलोक-तिर्यग्लोक संज्ञक दो प्रतरों को स्पर्श करने वाले मनुष्य असंख्यातगुणे हैं।