Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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३२०]
[ प्रज्ञापना सूत्र
[३४० - १] गौतम ! जघन्य दस सागरोपम की और उत्कृष्ट सत्रह सागरोपम की है । [ २ ] अपज्जत्तयधूमप्पभापुढविनेरइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वि अंतोमुहुत्तं ।
[३४०-२ प्र.] भगवन्! अपर्याप्त धूमप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई।
है ?
[३४०-२] गौतम! (उनकी स्थिति) जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [ ३ ] पज्जत्तयधूमप्पभापुढविनेरइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं दस सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं सत्तरस सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई ।
[३४०-३ प्र.] भगवन्! पर्याप्तक धूमप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई
है ?
[३४० - ३] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहुर्त कम दस सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम सत्तरह सागरोपम की है ।
३४१. [ १ ] तमप्पभापुढविनेरइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं सत्तरस सागरोवमाई, उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमाई । [३४१-१ प्र.] भगवन्! तपःप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [ ३४१ - १] गौतम ! जघन्य सत्तरह सागरोपम की और उत्कृष्ट बाईस सागरोपम की है ।
[ २ ] अपज्जत्तयतमप्पभापुढविनेरइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वि अंतोमुहुत्तं ।
[ ३४१-२ प्र.] भगवन् ! तमःप्रभापृथ्वी अपर्याप्तक नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[३४१-२] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहुर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है ।
[ ३ ] पज्जत्तयतमप्पभापुढविनेरइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ?
गोमा ! जहणेणं सत्तरस सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमाई अंतीमुत्तूणाई |
[३४१-३ प्र.] भगवन्! तमः प्रभापृथ्वी पर्याप्तक नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई
है ?
[३४१-३] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहुर्त कम सत्तरह सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम बाईस सागरोपम की है ।