Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ स्थितिपद]
[३४१ ___ [३८०-२ उ.] गौतम! जघन्य स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की
[३] पजत्तगगब्भवक्कंतियचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई।
[३८०-३ प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्थञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
[३८०-३ उ.] गौतम! उनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम की है।
३८१. [१] उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता?
गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी।
[३८१-१ प्र.] भगवन् ! उर:परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[३८१-१ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की है । [२] अपज्जत्तयउरपरिसप्पथलयरपंचेदियतिरिक्खजेणियाणं पुच्छा । गोयमा! जहणणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं।
[३८१-२ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तक उर:परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[३८१-२ उ.] गौतम! उनकी जघन्य स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है।
[३] पज्जत्तगउरपरिसप्पथलयरपंचेदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा।
गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तूणा। । [३८१-३ प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक उर:परिसर्प स्थलचर. पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[३८१-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पूर्वकोटि की है। ३८२. [१] सम्मुच्छिमसामण्णपुच्छा कायव्वा ।
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तेवण्णं वाससहस्साई । । [३८२-१ प्र.] भगवन् ! सामान्य सम्मूछिम उर:परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ?