Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ स्थितिपद ]
[ ३३९
[३७६-३ प्र.] भगवन् ! पर्याप्त सम्मूच्छिम जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[३७६-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम पूर्वकोटि की है । ३७७. [ १ ] गब्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी |
[ ३७७ - १ प्र.] भगवन् ! गर्भज जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ?
[३७७-१ उ.] गौतम! उनकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि (करोड़ पूर्व )
है।
[ २ ] अपज्जत्तयगब्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ।
गोयमा! जहणणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहूत्तं ।
[३७७-२ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त गर्भज जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही है ?
[३७७-२ उ.] गौतम! उनकी जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है। [ ३ ] पज्जत्तयगब्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तूणा ।
[३७७-३ प्र.] भगवन्! पर्याप्त गर्भज जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की कितने काल की स्थिति कही गई है ?
[३७७-३ उ.] गौतम! उनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की एवं उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम पूर्वकोटि
की है।
३७८. [ १ ] चउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ।
गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओ माई ।
[३७८-१ प्र.] भगवन् ! चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[३७८-१ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है ।
[ २ ] अपज्जत्तयचउप्पयथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ।
गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ।
[३७८-२ प्र.] भगवन्! अपर्याप्त चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ?