Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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३२८]
[प्रज्ञापना सूत्र
एकेन्द्रिय जीवों की स्थिति-प्ररूपणा
३५४. [१] पुढविकाइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहूत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं। [३५४-१ प्र.] भगवन्! पृथ्वीकायिक जीवों की कितने काल तक की स्थिति बताई गई हैं ? [३५४-१ उ.] गौतम! (उनकी स्थिति) जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की है। [२] अपज्जत्तयपुढविकाइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिणी पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं।
[३५४-२ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त पृथ्वीकायिक जीवों की कितने काल तक की स्थिति बताई गई है ?
[३५४-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पज्जत्तयपुढविकाइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं अंतोमुत्तूणाई।
[३५४-३ प्र.] भगवन्! पर्याप्त पृथ्वीकायिक जीवों की कितने काल तक कि स्थिति कही गई है ?
[३५४-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम बाईस हजार वर्ष की
है
३५५. [१] सुहमपुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोण वि अंतोमुहुत्तं। [३५५-१ प्र.] भगवन्! सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों की कितने काल तक की स्थिति कही गई है? [३५५-१ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [२] अपज्जत्तयसुहुमपुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं।
[३५५-२ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तक सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[३५५-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पज्जत्तयसुहुमपुढविकाइयाणं पुच्छा ।
गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। _ [३५५-३ प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?