Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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३३०]
[प्रज्ञापना सूत्र [३५७-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम सात हजार वर्ष की
३५८. सुहुमआउकाइयाणं ओहियाणं अपज्जत्तयाण पज्जत्तयाण य जहा सुहुमपुढविकाइयाणं (सु. ३५५) तहा भाणितव्वं।
[३५८] सूक्ष्म अप्कायिकों के औधिक (सामान्य), अपर्याप्तकों और पर्याप्तकों की स्थिति जैसी सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों की (सू. ३५५ में) कही, वैसी कहनी चाहिए।
३५९. [१] बादरआउकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सत्त वाससहस्साई। [३५९-१ प्र.] भगवन्! बादर अप्कायिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३५९-१ उ.] गौतम! (उनकी स्थिति) जघन्य अन्तर्मुहूर्त की तथा उत्कृष्ट सात हजार वर्ष की
[२] अपज्जत्तयबादरआउकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [३५९-२ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त बादर अप्कायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई
[३५९-२ उ.] गौतम (उनकी स्थिति) जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पज्जत्तयाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्त वाससहस्साई अंतोमुहत्तूणाई। [३५९-३ प्र.] भगवन्! पर्याप्त बादर अप्कायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? [३५९-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम सात हजार वर्ष की
३६०. [१] तेउकाइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि रातिंदियाई। [३६०-१ प्र.] भगवन्! तेजस्कायिक जीवों की कितने काल तक की स्थिति कही गई है ? [३६०-१ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट तीन रात्रि-दिन (अहोरात्र) की है। [२] अपज्जत्तयाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [३६०-२ प्र.) भगवन् ! तेजस्कायिक अपर्याप्तकों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?