Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापना सूत्र [२] अपज्जत्तयचरिदियाणं पुच्छा । गोयमा! जहणणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [३७१-२ प्र.] भगवन्! अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [३७१-२ उ.] गौतम! उनकी जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पज्जत्तयचउरिदियाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं छम्मासा अंतोमुहत्तूणा। [३७१-३ प्र.] भगवन्! पर्याप्त चतुरिन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है? [३७१-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम छह मास की है।
विवेचन विकलेन्द्रियों की स्थिति का निरूपण-प्रस्तुत तीन सूत्रों (सू. ३६९ से ३७१ तक) में द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के औधिक, अपर्याप्तक और पर्याप्तकों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति का निरूपण किया गया है। पंचेंन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों की स्थिति-प्ररूपणा
३७२. [१] पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं। [३७२-१ प्र.] भगवन्! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई
[३७२-१ उ.] गौतम! (उनकी स्थिति) जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की कही गई है।
[२] अपज्जत्तयपंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
[३७२-२ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही है ?
[३७२-२ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पज्जत्तगपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई ।
[३७२-३ प्र.] भगवन् ! पर्याप्त पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[३७२-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम की है।