Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ स्थितिपद]
[३२९
[३५५-३ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। ३५६. [१] बादरपुढविकाइयाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं । [३५६-१ प्र.] भगवन्! बादर पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है?
[३५६-१ उ.] गौतम! (उनकी स्थिति) जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की है।
[२] अपज्जत्तयबादरपुढविकाइयाणं पुच्छा।
गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। __ [३५६-२ प्र.] भगवन् ! बादर पृथ्वीकायिक अपर्याप्तक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
[३५६-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पज्जत्तयबादरपुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं अंतोमुहत्तूणाई ।
[३५६-३ प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक बादर पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[३५६-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहुर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम बाईस हजार वर्ष की है। ३५७. [१] आउकाइयाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सत्त वाससहस्साइं। [३५७-१ प्र.] भगवन्! अप्कायिक जीवों की कितने काल तक की स्थिति कही गई है ? [३५७-१ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष की है। [२] अपज्जत्तयआउकाइयाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [३५७-२ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त अप्कायिक जीवों की कितने काल तक की स्थिति कही गई
[३५७-२ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है तथा उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पज्जत्तयआउकाइयाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सत्त वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तूणाई। [३५७-३ प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक अप्कायिक जीवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई