Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय बहुवक्तव्यतापद]
[२९१ वैमानिक देव अथवा अन्य काय वाले जीव यथासम्भव ऊर्ध्वलोक से तिर्यक्लोक में मनुष्यरूप में उत्पन्न होते हैं, तब वे पूर्वोक्त दो प्रतरों का स्पर्श करते हैं। इसके अतिरिक्त विद्याधर आदि भी जब मेरु आदि पर गमन करते हैं, तब उनके शुक्र, शोणित आदि पुद्गलों में सम्मूछिम मनुष्यों की उत्पत्ति होती है
और वे विद्याधर रुधिरादिपुद्गलों के साथ सम्मिश्र होकर जब लौटते हैं, तब पूर्वोक्त दो प्रतरों का स्पर्श करते हैं, वे संख्या में अधिक होते हैं, इस कारण असंख्यातगुणे हैं। इनकी अपेक्षा अधोलोक-तिर्यक्लोक नामक दो प्रतरों को स्पर्श करने वाले मनुष्य असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि अधोलौकिक ग्रामों में स्वभावतः ही बहुत-से मनुष्यों का सद्भाव है। अतः जो तिर्यक्लोक से मनुष्यों या अन्य कायों से आकर अधोलौकिक ग्रामों में गर्भज मनुष्य या सम्मूछिम मनुष्य के रूप में उत्पन्न होने वाले हैं, अथवा अधोलौकिक ग्रामों से या अधोलोकवर्ती किसी अन्य स्थान से तिर्यक्लोक में गर्भज या सम्मूछिम मनुष्य के रूप में उत्पन्न होते हुए मनुष्य पूर्वोक्त दो प्रतरों का स्पर्श करते हैं। अतएव इन्हें संख्यातगुणा कहा है। इनकी अपेक्षा ऊर्ध्वलोक में मनुष्य संख्यातगुणे अधिक हैं, क्योंकि सौमनस आदि वनों में क्रीड़ा आदि करने के लिए प्रचुरतर विद्याधरों एवं चारणमुनियों का गमनागमन होता है, और उनके यथायोग रुधिरादिपुद्गलों के योग से सम्मूछिम मनुष्यों की उत्पत्ति होती है। इनकी अपेक्षा भी अधोलोक में संख्यातगुणे मनुष्य हैं; क्योंकि अधोलोकं स्वस्थान होने से वहाँ अधिकता होनी स्वाभाविक है। इनकी अपेक्षा भी तिर्यग्लोक में संख्यातगुणे मनुष्य अधिक हैं, क्योंकि तिर्यग्लोक का क्षेत्र संख्यातगुणा अधिक है, और मनुष्यों का वह स्वस्थान है, इस कारण अधिकता सम्भव है।
__मनुष्यस्त्रियों का क्षेत्र की अपेक्षा से अल्पबहुत्व—सबसे कम मनुष्यस्त्रियाँ तीनों लोक को स्पर्श करने वाली हैं, क्योंकि ऊर्ध्वलोक से अधोलोक में उत्पन्न होने वाली मारणान्तिक-समुद्घातवश जब वे अपने आत्मप्रदेशों को बाहर निकालती हैं, अथवा जब वे वैक्रियसमुद्घात या केवलीसमुद्घात करती हैं, तब तीनों लोकों का स्पर्श करती हैं और ऐसी मनुष्यस्त्रियाँ अत्यन्त कम होती हैं, इस कारण सबसे थोड़ी मनुष्यस्त्रियाँ त्रैलोक्य में बताई गई हैं। इनकी अपेक्षा ऊर्ध्वलोक-तिर्यग्लोकसंज्ञक दो प्रतरों का स्पर्श करने वाली स्त्रियाँ संख्यातगुणी होती हैं। वैमानिकदेव अथवा शेष कायवाले कोई जीव जब ऊर्ध्वलोक से तिर्यग्लोक में मनुष्यस्त्री के रूप में उत्पन्न होने वाले होते हैं, तथा तिर्यग्लोकगत मनुष्यस्त्रियाँ जब ऊर्ध्वलोक में उत्पन्न होते समय मारणान्तिक समुद्घात करती हैं, तब दूर तक ऊपर अपने आत्मप्रदेशों को फैलाती हैं, फिर भी जब तक जो कालगत नहीं हुई हैं, वे पूर्वोक्त दोनों प्रतरों का स्पर्श करती हैं,
और वे दोनों प्रकार की स्त्रियाँ बहुत अधिक होती हैं। उनकी अपेक्षा अधोलोक-तिर्यग्लोकसंज्ञक पूर्वोक्त प्रतरद्वय का स्पर्श करने वाली मनुष्यस्त्रियाँ संख्यातगुणी होती हैं, क्योंकि तिर्यग्लोक से मनुष्यस्त्रीपर्याय से या अन्य पर्याय से अधोलौकिक ग्रामों में अथवा अधोलौकिक ग्राम से तिर्यग्लोक में मनुष्यस्त्री के रूप में उत्पन्न होने वाली होती हैं, उनमें से कई अधोलौकिक ग्रामों में अवस्थान करके भी उक्त दोनों प्रतरों का स्पर्श करती हैं। ऐसी स्त्रियां पूर्वोक्तप्रतरद्वय की स्त्रियों से बहुत अधिक होती हैं। इनकी