Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापना सूत्र अधेलोयतिरिलोए विसेसाहिया ३, तिरियलोए असंखेज्जगुणा ४, उड्डलोए असंखेज्जगुणा ५, अधेलोए विसेसाहिया ६।
[३२६] क्षेत्र के अनुसार १. सबसे कम पुद्गल त्रैलोक्य में हैं, २. ऊर्ध्वलोक-तिर्यग्लोक में (उनसे) अनन्तगुणे हैं, ३. अधोलोक-तिर्यग्लोक में विशेषाधिक हैं, ४. तिर्यग्लोक में (उनकी अपेक्षा) असंख्यातगुणे हैं, ५. ऊर्ध्वलोक में (उनकी अपेक्षा) असंख्यातगुणे हैं, ६. (और उनकी अपेक्षा भी) अधोलोक में विशेषाधिक हैं।
___३२७. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा पोग्गला उड्ढदिसाए १, अधेदिसाए विसेसाहिया २, उत्तरपुरस्थिमेणं दाहिणपच्चत्थिमेण य दो वि तुल्ला असंखेजगुणा ३, दाहिणपुरथिमेणं उत्तरपच्चत्थिमेण य दो वि तुल्ला विसेसाहिया ४, पुरथिमेणं असंखेज्जगुणा ५, पच्चत्थिमेणं 'विसेसाहिया ६, दाहिणेणं विसेसाहिया ७, उत्तरेणं विसेसाहिया ८।
[३२७] दिशाओं के अनुसार १. सबसे कम पुद्गल ऊर्ध्वदिशा में हैं, २. (उनसे) अधोदिशा में विशेषाधिक हैं, ३. उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम दोनों में तुल्य हैं, (पूर्वोक्त दिशा से) अंख्यातगुणे हैं, ४. दक्षिण-पूर्व और उत्तर-पश्चिम दोनों में तुल्य हैं और (पूर्वोक्त दिशाओं से) विशेषाधिक हैं, ५. (उनकी अपेक्षा) पूर्वदिशा में असंख्यातगुणे हैं, ६. (उनकी अपेक्षा) पश्चिमदिशा में विशेषाधिक हैं, ७. (उनकी अपेक्षा) दक्षिण में विशेषाधिक हैं, (और उनकी अपेक्षा भी) ८. उत्तर में विशेषाधिक हैं।
___३२८. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवाइं दव्वाइँ तेलोक्के १, उड्ढलोयतिरियलोए अणंतगुणाई २, अधेलोयतिरियलोए विसेसाहियाई ३, उड्डलोए असंखेज्जगुणाई ४, अधेलोए अणंतगुणाई ५, तिरियलोए संखेज्जगुणाई ६।
[३२८] क्षेत्र के अनुसार १. सबसे कम द्रव्य त्रैलोक्य में (त्रिलोकस्पर्शी) हैं, २. (उनकी अपेक्षा) ऊर्ध्वलोक-तिर्यक्लोक में अनन्तगुणे हैं, ३. (उनकी अपेक्षा) अधोलोक-तिर्यक्लोक में विशेषाधिक हैं, ४. (उनसे) ऊर्ध्वलोक में असंख्यातगुणे अधिक हैं, ५. (उनकी अपेक्षा) अधोलोक में अनन्तगुणे हैं, ६. (और उनकी अपेक्षा भी) तिर्यग्लोक में संख्यातगुणे हैं।
____३२९. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवाइं दव्वाइं अधेदिसाए १, उड्डदिसाए अणंतगुणाई २, उत्तरपुरित्थमेणं दाहिणपच्चत्थिमेण य दो वि तुल्लाइं असंखेन्जगुणाई ३, दाहिणपुरस्थिमेणं उत्तरपच्चत्थिमेण य दो वि तुल्लाई विसेसाहियाइं ४, पुरथिमेणं असंखेजगुणाई ५, पच्चत्थिमेणं विसेसाहियाई ६, दाहिणेणं विसेसाहियाइं ७, उत्तरेणं विसेसाहियाई ८।
[३२९] दिशाओं के अनुसार, १. सबसे थोड़े द्रव्य अधोदिशा में हैं, २. (उनकी अपेक्षा) ऊर्ध्वदिशा में अनन्तगुणे हैं, ३. उत्तरपूर्व और दक्षिण-पश्चिम दोनों में तुल्य हैं, (पूर्वोक्त ऊर्ध्वदिशा से) असंख्यातगुणे हैं, ४. दक्षिणपूर्व और उत्तरपश्चिम, दोनों में तुल्य हैं तथा (पूर्वोक्त दो दिशाओं से) विशेषाधिक हैं, ५. (उनकी अपेक्षा) पूर्व में असंख्यातगुणे हैं, ६. (उनकी अपेक्षा) पश्चिम में विशेषाधिक हैं, ७. (उनसे)