Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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१४८]
[प्रज्ञापना सूत्र
उनमें बहुत-से शर्कराप्रभापृथ्वी के नारक निवास करते हैं। (वे) काले, काली आभा वाले, अत्यन्त गम्भीर रोमाञ्चयुक्त, भयंकर, उत्कट त्रासजनक, तथा वर्ण से अत्यन्त काले कहे गए हैं।
हे आयुष्मन् श्रमणो! वे (नारक) वहाँ नित्य भयभीत, नित्य त्रस्त, तथा परमाधार्मिकों (द्वारा) सदैव त्रासित, सदा उद्विग्न (घबराए हुए) और नित्य अत्यन्त अशुभ तत्सम्बद्ध नरक के भय का प्रत्यक्ष अनुभव करते हुए रहते हैं। . १७०. कहि णं भते! वालुयप्पभापुढविनेरयाणं पजत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ?
गोयमा! वालुयप्पभाए पुढवीए अट्ठावीसुत्तरजोयणसतसहस्सबाहल्लाए उवरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहेत्ता हेट्ठा वेगं जोयणसहस्सं वजेत्ता मज्झे छव्वीसुत्तरे जोयणसतसहस्से , एत्थ णं वालुयप्पभापुढविनेरइयाणं पण्णरस णिरयावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं। .
ते णं णरगा अंतो वट्ठा बाहिं चउरंसा अहे खुरप्पसंठाणसंठिता णिच्चंधयारतमसा ववगयगह-चंद-सूर-नक्खत्तजोइसप्पहा मेद-वसा-पूयपडल-रुहिर-मंसचिक्खिल्ललित्ताणुलेवणतला असुई वीसा परमदुब्भिगंधा काऊअगणिवण्णाभा कक्खडफासा दुरहियासा असुभा नरगा असुभा नरएसु वेदणाओ एत्थ णं वालुयप्पभापुढविनेरइयाणं पज्जत्ताऽपजत्ताणं ठाणा पण्णत्ता।
उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, समुग्घाएणं लोयस्स असंखेजइभागे, सट्ठाणेणं लोगस्स असंखेजइभागे।
तत्थ णं बहवे वालुयप्पभापुढविनेरइया परिवसंति काला कालोभासा गंभीरलोमहरिसा भीमा उत्तासणगा परमकिण्हा वण्णेणं पण्णत्ता समणाउसो।
ते णं णिच्चं भीता णिच्चं तत्था णिच्चं तसिता णिच्चं उव्विग्गा णिच्चं परममसुहं संबद्धं णरगभयं पच्चणुभवमाणा विहरंति।
[१७० प्र.] भगवन् ! वालुकाप्रभापृथ्वी के पर्याप्त और अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान कहां कहे गए हैं? ___ [१७० उ.] गौतम! एक लाख अट्ठाईस हजार योजन मोटी वालुकाप्रभापृथ्वी के ऊपर के एक हजार योजन अवगाहन (पार) करके अर्थात् नीचे, और नीचे से एक हजार योजन छोड़ कर बीच में एक लाख छव्वीस हजार योजन प्रदेश में, वालुकाप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के पन्द्रह लाख नारकावास हैं, ऐसा कहा है।
वे नरक अन्दर से गोल, बाहर से चौरस और नीचे से छुरे के आकार से युक्त, नित्य गाढ़ अन्धकार से व्याप्त, ग्रह, चन्द्रमा, सूर्य, नक्षत्र आदि ज्योतिष्कों की प्रभा से रहित हैं। उनके तलभाग मेद, चर्बी, मवाद-पटल, रुधिर और मांस के कीचड़ के लेप से लिप्त होते हैं; अतएव वे अशुचि (अपवित्र), बीभत्स, अतीव दुर्गन्धित, कापोत रंग की धधकती अग्नि के वर्णसदृश, दुःसह एवं अशुभ नरक हैं। उन नरकों में वेदनाएँ अशुभ हैं। इन (ऐसे नारकावासों) में वालुकाप्रभापृथ्वी के पर्याप्त एवं अपर्याप्त नारकों के स्थान कहे हैं।