Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय बहुवक्तव्यतापद]
[२६३ विभंगज्ञानी होते हैं, इस दृष्टि से विभगज्ञानी उनसे असंख्यातगुणे हैं। उनसे केवलज्ञानी अनन्तगुणे हैं, क्योंकि सिद्ध अनन्त होते हैं। उनसे मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी अनन्तगुणे हैं, क्योंकि मति-श्रुतअज्ञानी वनस्पतिकायिक भी होते हैं, और वे सिद्धों से भी अनन्तगुणे हैं। स्वस्थान में ये दोनों अज्ञान परस्पर तुल्य हैं। ग्यारहवाँ दर्शनद्वार : दर्शन की अपेक्षा जीवों का अल्पबहुत्व
२६०. एतेसि णं भंते! जीवाणं चक्खुदंसणीणं अचक्खुदंसणीणं ओहिदंसणीणं केवलदसणीण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?
गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा ओहिदंसणी १, चक्खुदंसणी असंखेजगुणा २, केवलदंसणी अणंतगुणा ३, अचक्खुदंसणी अणंतगुणा ४। दारं ॥११॥
[२६० प्र.] भगवन्! इन चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, अवधिदर्शनी और केवलदर्शनी जीवों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य, अथवा विशेषाधिक हैं ? __ [२६० उ.] गौतम! १. सबसे थोड़े अवधिदर्शनी जीव हैं, २. (उनसे) चक्षुदर्शनी जीव असंख्यातगुणे हैं, ३. (उनसे) केवलदर्शनी अनन्तगुणे हैं, (और उनसे भी) ४. अचक्षुदर्शनी जीव अनन्तगुणे हैं।
__ ग्यारहवां (दर्शन) द्वार ॥ ११॥ विवेचन–ग्यारहवाँ दर्शनद्वार : दर्शन की अपेक्षा से जीवों का अल्पबहुत्व- प्रस्तुत सूत्र (२६०) में चार दर्शनों की अपेक्षा से जीवों के अल्पबहुत्व का विचार किया गया है। सबसे थोड़े अवधिदर्शनी जीव इसलिए हैं कि अवधिदर्शन देवों, नारकों और कतिपय संज्ञीतिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों और मनुष्यों को ही होता है। उनकी अपेक्षा चक्षुदर्शनी जीव असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि चक्षुदर्शन सभी देवों, नारकों, गर्भज मनुष्यों, संज्ञी तिर्यंचपंचेन्द्रियों, असंज्ञी तिर्यचपंचेन्द्रियों और चतुरिन्द्रिय जीवों को भी होता है। उनकी अपेक्षा केवलदर्शनी अनन्तगुणे हैं, क्योंकि सिद्ध अनन्त हैं। उनकी अपेक्षा भी अचक्षुदर्शनी अनन्तगुणे हैं, क्योंकि अचक्षुदर्शनियों में वनस्पतिकायिक भी हैं, जो अकेले ही सिद्धों से अनन्तगुणे हैं। बारहवां संयतद्वार : संयत आदि की अपेक्षा जीवों का अल्पबहुत्व
२६१. एतेसि णं भंते! जीवाणं संजयाणं असंजयाणं संजयासंजयाणं नोसंजयनोअसंजयनोसंजतासंजताण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?
गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा संजता १, संजयासंजता असंखेज्जगुणा २, नोसंजतनोअसंजतनोसंजतासंजता अणंतगुणा ३, असंजता अणंतगुणा ४। दारं॥ १२॥
[१६१ प्र.] भगवन् ! इन संयतों, असंयतों, संयतासंयतों और नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयता-संयत १. प्रज्ञापना . म. वृत्ति , पत्रांक १३८