Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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द्वितीय स्थानपद]
[१९९ २०८ कहि णं भंते! मज्झिमगाणं गेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते! मज्झिमगेवेज्जगा देवा परिवसंति ? ___गोयमा! हेट्ठिमगेवेज्जगाणं उप्पिं सपक्खि सपडिदिसिं जाव (सू. २०६ [१]) उपइत्ता एत्थ णं मज्झिमगेवेज्जगदेवाणं तओ गेविज्जगविमाणपत्थडा पण्णत्ता। पाईण-पडीणायता जहा हेट्ठिमगेवेज्जगाणं णवरं सत्तुत्तरे विमाणावाससते हवंतीति मक्खातं। ते णं विमाणा जाव (सु. २०६ [१]) पडिरूवा। एत्थ णं मज्झिमगेवेजगाणं देवाणं जाव (सु. २०७) तिसु वि लोगस्स असंखेज्जतिभागे। तत्थ णं बहवे मज्झिमगेवेज्जगा देवा परिवसंति जाव (सु. २०७) अहमिंदा नाम ते देवगणा पण्णत्ता समणाउसो ।
[२०८ प्र.] भगवन्! पर्याप्तक और अपर्याप्तक मध्यम ग्रैवेयक देवों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? भगवन् ! मध्यम ग्रैवेयक देव कहाँ रहते हैं ?
[२०८ उ.] गौतम! अधस्तन ग्रैवेयकों के ऊपर समान दिशा और समान विदिशा में यावत् ऊपर दूर जाने पर, मध्यम ग्रैवेयक देवों के तीन ग्रैवेयकविमान-प्रस्तट कहे गए हैं; जो पूर्व-पश्चिम में लम्बे हैं; इत्यादि वर्णन जैसा अधस्तन ग्रैवेयकों का (सू. २०७ में) कहा गया है, वैसा ही यहाँ कहना चाहिए। विशेष यह है कि (इनके एक सौ सात विमानावास कहे गए हैं। वे विमान (विमानावास) (सू. २०६१ के अनुसार) यावत् 'प्रतिरूप हैं' तक (समझना चाहिए)। यहाँ (इन विमानावासों में) पर्याप्त और अपर्याप्त मध्यम-ग्रैवेयक देवों के स्थान कहे गए हैं। (ये स्थान) तीनों (पूर्वोक्त) अपेक्षाओं से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं। वहाँ बहुत-से मध्यम ग्रैवेयकदेव निवास करते हैं (इत्यादि शेष वर्णन सू. २०७ के अनुसार) यावत् हे आयुष्मन् श्रमणो! वे देवगण 'अहमिन्द्र' कहे गए हैं; (तक समझना चाहिए)।
२०९. कहि णं भंते! उवरिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते! उवरिमगेवेज्जगा देवा परिवसंति ?
गोयमा? मज्झिमगेवेज्जगदेवाणं उप्पिं जाव (सु. २०६ [१]) उप्पइत्ता एत्थ णं उवरिमगेवेज्जगाणं देवाणं तओ गेविज्जगविमाणपत्थडापण्णत्ता पाईण-पडीणायता सेसं जहा हेट्ठिमगेविजगाणं (सु. २०७), नवरं एगे विमाणावाससते भवंतीति मक्खातं । सेसं तहेव भाणियव्वं (सु. २०७) जाव अहमिंदा णामं ते देवगणा पण्णत्ता समणाउसो!।
एक्कारसुत्तरं हेट्ठिमेसु सत्तुत्तरं च मज्झिमए।
सयमेगं उवरिमए पंचेव अणुत्तरविमाणा॥१५७॥ [२०९ प्र.] भगवन्! पर्याप्त और अपर्याप्त उपरितन ग्रैवेयक देवों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? भगवन् ! उपरितन ग्रैवेयक देव कहाँ निवास करते हैं?
[२०९ उ.] गौतम! मध्यम ग्रैवेयकों के ऊपर यावत् (सू. २०६-१ अनुसार) दूर जाने पर, वहाँ उपरितन ग्रैवेयक देवों के तीन ग्रैवेयक विमान प्रस्तट कहे गए हैं, जो पूर्व-पश्चिम में लम्बे हैं; शेष