Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ २२५
तृतीय बहुवक्तव्यतापद ]
असंख्यातगुणे अधिक हैं, क्योंकि उत्तर में असंख्यात योजन - विस्तृत पुष्पावकीर्ण विमान बहुत हैं और उनसे भी विशेषाधिक हैं, क्योंकि कृष्णपाक्षिकों का वहाँ अधिकतर गमन होता है। ईशान, सनत्कुमार एवं माहेन्द्र कल्प के देवों का भी दिशा की अपेक्षा से अल्पबहुत्व इसी प्रकार है और उसका कारण भी पूर्ववत् ही समझ लेना चाहिए । ब्रह्मलोककल्प के देव सबसे कम पूर्व, पश्चिम और उत्तर दिशा में हैं, क्योंकि बहुसंख्यक कृष्णपाक्षिक दक्षिणदिशा में उत्पन्न होते हैं और शुक्लपाक्षिक थोड़े ही होते हैं। दक्षिणदिशा में उनकी अपेक्षा असंख्यातगुणे देव हैं, क्योंकि वहाँ बहुत कृष्णपाक्षिक उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार लान्तक, महाशुक्र एवं सहस्रार कल्प के देवों का (दिशाओं की अपेक्षा) अल्पबहुत्व एवं कारण पूर्ववत् समझ लेना चाहिए। सहस्रारकल्प के बाद ऊपर के कल्पों के तथा नौ ग्रैवेयक एवं पांच अनुत्तर विमानों के देव चारों दिशाओं में समान हैं, क्योंकि वहाँ मनुष्य ही उत्पन्न होते हैं ।
(१८) सिद्धजीवों का अल्पबहुत्व - सबसे अल्प सिद्ध दक्षिण और उत्तर में हैं, क्योंकि मनुष्य ही सिद्ध होते हैं, अन्य जीव नहीं । सिद्ध होने वाले मनुष्य चरम समय में जिन आकाश प्रदेशों में अवगाढ़ ( स्थित ) होते हैं, उन्हीं आकाशप्रदेशों की दिशा में ऊपर जाते हैं, उसी सीध में ऊपर जाकर वे लोकाग्र में स्थित हो जाते हैं। दक्षिणदिशा में पांच भरतक्षेत्रों में तथा उत्तर में पांच ऐरावत क्षेत्रों में मनुष्य अल्प हैं, क्योंकि सिद्धक्षेत्र अल्प है। फिर सुषम- सुषमा आदि आरों में सिद्धि प्राप्त नहीं होती। इस कारण दक्षिण और उत्तर में सिद्ध सबसे कम हैं । पूर्वदिशा में उनसे असंख्यातगुणे हैं; क्योंकि भरत और ऐरावत क्षेत्र की अपेक्षा पूर्वविदेह संख्यातगुणा विस्तृत है, इसलिए वहाँ मनुष्य भी संख्यातगुणे हैं, और वहाँ से सर्वकाल में सिद्धि होती रहती है। उनसे भी पश्चिम दिशा में विशेषाधिक हैं; क्योंकि अधोलौकिक ग्रामों में मनुष्यों की अधिकता है ।
द्वितीय गतिद्वार : पांच या आठ गतियों की अपेक्षा जीवों का अल्पबहुत्व
२२५. एएसि णं भंते! नेरइयाणं तिरिक्खजोणियाणं मणुस्साणं देवाणं सिद्धाणं य पंचगति' समासेणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?
गोमा ! सव्वत्थोवा मणुस्सा १, नेरइया असंखेज्जगुणा २, देवा असंखेज्जगुणा ३, सिद्धा अनंतगुणा ४, तिरिक्खजोणिया अनंतगुणा ५ ।
[२२५ प्र.] भगवन्! नारकों, तिर्यंचों, मनुष्यों, देवों और सिद्धों की पाँच गतियों की अपेक्षा से संक्षेप में कौन किनसे अल्प हैं, बहुत हैं, तुल्य हैं अथवा विशेषाधिक हैं ?
[२२५ उ.] गौतम! १. सबसे थोड़े मनुष्य हैं, २. ( उनमें ) नैरयिक असंख्यातगुणे हैं, ३. ( उनसे ) देव असंख्यातगुणे हैं, ४. उनसे सिद्ध अनन्तगुणे है और ५. ( उनसे भी ) तिर्यंचयोनिक जीव अनन्तगुणे हैं।
१. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक ११६ से ११९ तक
२. 'पंचगति अणुवाएणं समासेणं' यह पाठान्तर मिलता है। -सं.