Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय बहुवक्तव्यतापद]
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इनमें वेद की विवक्षा न करने से सम्मूछिम मनुष्यों का भी समावेश हो जाता है और सम्मूर्च्छिनज मनुष्य उच्चार, प्रस्रवण, वमन आदि से लेकर नगर की नालियों (मोरियों) आदि (१४ स्थानों) में असंख्येय उत्पन्न होते हैं। मनुष्यों की अपेक्षा नारक असंख्यातगुणे हैं, कयोंकि मनुष्य उत्कृष्ट संख्या में क्षेणी के असंख्यातवें भागगत प्रदेशों की राशि प्रमाण पाए जाते हैं, जबकि नारक अंगुलमात्र क्षेत्र के प्रदेशों की राशिवर्ती तृतीय वर्गमूल से गुणित प्रथम वर्गमूलप्रमाण-श्रेणिगत आकाशप्रदेशों की राशि के बराबर हैं। अतः वे उनसे असंख्यातगुणे हैं। नारकों से तिर्यचिनी असंख्यातगुणी हैं, क्योंकि वे प्रतरासंख्येय भाग में रहे हुए असंख्यातश्रेणियों के आकाशप्रदेशों के समान हैं। देव इनसे भी असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि वे असंख्येयगुणप्रतर के असंख्येयभागवर्ती असंख्येय श्रेणिगतप्रदेशों की राशि-प्रमाण हैं। देवों की अपेक्षा देवियां संख्येयगुणी अधिक हैं, क्योंकि वे देवों से बत्तीसगुणी हैं। देवियों की अपेक्षा सिद्ध अनन्तगुणे हैं
और सिद्धों से तिर्यञ्च अनन्तगुणे अधिक हैं। इनकी अधिकता का कारण पहले बताया जा चुका है। तृतीय इन्द्रियद्वार : इन्द्रियों की अपेक्षा से जीवों का अल्पबहुत्व ___२२७. एतेसि णं भंते! सइंदियाणं एगिंदियाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिंदियाणं पंचेंदियाणं अणिंदियाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? __गोयमा! सव्वत्थोवा पंचेंदिया १, चउरिदिया विसेसाहिया २, तेइंदिया विसेसाहिया ३, बेइंदिया विसेसाहिया ४, अणिंदिया अणंतगुणा ५, एगिंदिया अणंतगुणा ६, सइंदिया विसेसाहिया ७।
[२२७ प्र.] भगवन् ! इन इन्द्रिययुक्त, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय और अनिन्द्रियों में कौन किन से अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं?
[२२७ उ.] गौतम! १. सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय जीव हैं, २. (उन से) चतुरिन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं, ३. (उनसे) त्रीन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं, ४. (उनसे) द्वीन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं, ५. (उनसे) अनिन्द्रिय जीव अनन्तगुणे हैं, ६. (उनसे) एकेन्द्रिय जीव अनन्तगुणे हैं और ७. उनसे इन्द्रिय सहित जीव विशेषाधिक हैं।
२२८. एतेसि णं भंते! सइंदियाणं एगिंदियाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिदियाणं पंचेंदियाणं अपज्जत्तगाणं कतरे कतरेहिंतो अप्या वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया ?
गोयमा! सत्वत्थोवा पंचेंदिया अपज्जत्तगा १, चउरिं दिया अपज्जत्तया विसेसाहिया २, तेइंदिया अपज्जत्तया विसेसाहिया ३, बेइंदिया अपज्जत्तया विसेसाहिया ४, एगिदिया अपज्जत्तया अणंतगुणा ५, सइंदिया अपज्जत्तया विसेसाहिया ६।
[२२८ प्र.] भगवन् ! इन इन्द्रियसहित, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्तकों में कौन किनसे अल्प, बहुत तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? ___[२२८ उ.] गौतम! १. सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक हैं, २. (उनसे) चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तक
१. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक १२०