Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापना सूत्र अधिक हैं। उनसे तेजोलेश्या वाले संख्यातगुणे हैं क्योंकि समस्त सौधर्म, ईशान कल्प के वैमानिक देवों में, सभी ज्योतिष्क देवों में तथा कतिपय भवनपति, वाणव्यन्तर, गर्भज, तिर्यंञ्चपंचेन्द्रियों और मनुष्यों में, बादर-पर्याप्त-एकेन्द्रियों में तेजोलेश्या पाई जाती है। यद्यपि ज्योतिष्कदेव भवनवासी देवों तथा सनत्कुमार आदि देवों से असंख्यातगुणे होने से तेजोलेश्या वाले जीव असंख्यातगुणे कहने चाहिए, तथापि पद्मलेश्या वालों से तेजोलेश्या वाले जीव संख्यातगुणे ही हैं। यह कथन केवल देवों की लेश्याओं को लेकर नहीं नहीं किया गया है, अपितु समग्रजीवों को लेकर किया गया है, इसलिए पद्मेश्या वालों में देवों के अतिरिक्त बहुत-से तिर्यंञ्च भी सम्मिलित हैं। इसी तरह तेजोलेश्या वालों में भी हैं। और पद्मलेश्या वाले तिर्यंञ्च भी बहुत हैं। अतएव उनसे तेजोलेश्या वाले संख्यातगुणे ही अधिक हो सकते हैं असंख्यातगुणे नहीं। तेजोलेश्या वालों से अलेश्य (लेश्यारहित-सिद्ध) अनन्तगुणे हैं, क्योंकि सिद्धजीव अनन्त हैं। उनसे कापोतलेश्या वाले जीव अनन्तगुणे हैं। क्योंकि वनस्पतिकायिक जीवों में कापोतलेश्या सम्भव है
और वनस्पतिकायिक जीव सिद्धों से अनन्तगुणे हैं। उनसे नीललेश्या वाले विशेषाधिक है, क्योंकि नीललेश्या वाले जीव कापोतलेश्या वालों से प्रचुरतर होते हैं। उनसे कृष्णलेश्या वाले विशेषाधिक हैं, क्योंकि वे प्रभूततम हैं। उनकी अपेक्षा सामान्यतः सलेश्य जीव विशेषाधिक हैं, क्योंकि सलेश्य में नीललेश्यादि वाले सभी लेश्यावान् जीवों का समावेश हो जाता है। नौवां दृष्टि (सम्यक्त्व) द्वार : तीन दृष्टियों की अपेक्षा जीवों का अल्पबहुत्व - २५६. एतेसि णं भंते! जीवाणं सम्मद्दिट्ठीणं मिच्छछिट्ठीणं सम्मामिच्छादिट्ठीणं च कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?
गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा सम्मामिच्छद्दिट्ठी १, सम्मट्ठिी अणंतगुणा २, मिच्छट्ठिी अणंतगुणा ३। दारं ९।
[२५६ प्र.] भगवन्? सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि एवं सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ?
[२५६ उ.] गौतम! १. सबसे थोड़े सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव हैं, २. (उनसे) सम्यग्दृष्टि जीव अनन्तगुणे हैं और, ३. (उनसे भी) मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तगुणे हैं। नौवां दृष्टिद्वार है॥ ९॥
विवेचन–नौवां दृष्टिद्वार : तीन दृष्टियों की अपेक्षा से जीवों का अल्पबहुत्व—प्रस्तुत सूत्र (२५६) में सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और मिश्रदृष्टि की अपेक्षा जीवों के अल्पबहुत्व का विचार किया गया है। ___ सबसे थोड़े सम्यग्मिथ्या (मिश्र) दृष्टि जीव हैं, क्योंकि मिश्रदृष्टि के परिणाम का काल अन्तर्मुहूर्त १. (क) प्रज्ञापनसूत्रा मलय. वृत्ति, पत्रांक १३५-१३६ (ख) . पम्हलेसा गब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणिया संखेज्जगुणा, तिरिक्खजोणिणीओ संखेज्जगुणाओ, तेउलेसा
गब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणिया संखेज्जगुणा, तेउलेसाओ तिरिक्खजोणिणीओ संखेज्जगुणाओ।' - प्रज्ञापना. महादण्डक (म. वृ. पृ.१३६)।