Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय बहुवक्तव्यतापद]
[२२०] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े भवनवासी देव पूर्व और पश्चिम में हैं। (उनसे) असंख्यातगुणे अधिक उत्तर में हैं और (उनसे भी) असंख्यातगुणे दक्षिण दिशा में हैं। ___ २२१. दिसाणुवातेणं सव्वत्थोवा वाणमंतरा देवा पुरथिमेणं, पच्चत्थिमेणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया, दाहिणेणं विसेसाहिया। ___[२२१] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे अल्प वाणव्यन्तर देव पूर्व में हैं, उनसे विशेषाधिक पश्चिम में हैं, उनसे विशेषाधिक उत्तर में है और उनसे भी विशेषाधिक दक्षिण में हैं।
२२२. दिसाणुवातेणं सव्वत्थोवा जोइसिया देवा पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं, दाहिणणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया। __[२२२] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े ज्योतिष्क देव पूर्व एवं पश्चिम में हैं, दक्षिण में उनसे विशेषाधिक हैं और उत्तर में उनसे भी विशेषाधिक हैं। ___२२३. [१] दिसाणुवातेणं सव्वत्थोवा देवा सोहम्मे कप्पे पुरथिम-पच्चत्थिमेणं, उत्तरेणं असंखेजगुणा, दाहिणेणं विसेसाहिया।
[२२३-१] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे अल्प देव सौधर्मकल्प में पूर्व तथा पश्चिम दिशा में हैं, उत्तर में (उनसे) असंख्यातगुणे हैं और दक्षिण में (उनसे भी) विशेषाधिक हैं।
[२] दिसाणुवातेणं सव्वत्थोवा देवा ईसाणे कप्पे पुरथिम-पच्चत्थिमेणं, उत्तरेणं असंखेजगुणा, दाहिणेणं विसेसाहिया।
[२२३-२] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम देव ईशान-कल्प में पूर्व एवं पश्चिम में है। उत्तर में (उनसे) असंख्यातगुणे हैं और दक्षिण में (उनसे भी) विशेषाधिक हैं।
[३] दिसाणुवातेणं सव्वत्थोवा देवा सणंकुमारे कप्पे पुरस्थिम-पच्चत्थिमेणं, उत्तरेणं असंखेजगुणा, दाहिणेणं विसेसाहिया।
[२२३-३] दिशाओं की अपेक्षा सबसे अल्प देव सनत्कुमारकल्प में पूर्व और पश्चिम में हैं, उत्तर में (उनसे) असंख्यातगुणे हैं और दक्षिण में (उनसे भी) विशेषाधिक हैं।
[४] दिसाणुवातेणं सव्वत्थोवा देवा माहिंदे कप्पे पुरथिम-पच्चत्थिमेणं, उत्तरेणं असंखेजगुणा, दाहिणेणं विसेसाहिया। __[२२३-४] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे अल्प देव माहेन्द्रकल्प में पूर्व तथा पश्चिम में हैं, उत्तर में (उनसे) असंख्यातगुणे हैं और दक्षिण में (उनसे भी) विशेषाधिक हैं।
[५] दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा देवा बंभलोए कप्पे पुरत्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं, दाहिणेणं असंखेज्जगुणा।
[२२३-५] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम देव ब्रह्मलोककल्प में पूर्व, पश्चिम और उत्तर में हैं; दक्षिणदिशा में (उनसे) असंख्यातगुणे हैं।