Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ प्रज्ञापना सूत्र
[२] दाहिणिल्लेहिंतो तमापुढविणेरइहिंतो पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीए नेरइया पुरत्थिमपच्चत्थिम-उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणेणं असंखेज्जगुणा ।
२१८]
[२१७-२] दक्षिणदिशावर्ती तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से पांचवी धूमप्रभापृथ्वी के नैरयिक पूर्व, पश्चिम तथा उत्तर में असंख्यातगुणे हैं और ( उनसे भी) असंख्यातगुणे दक्षिणदिशा में हैं ।
[ ३ ] दाहिणिल्लेहिंतो धूमप्पभापुढविनेरइएहिंतो चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए नेरइया पुरत्थिमपच्चत्थिम-उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणेणं असंखेज्जगुणा ।
[२१७-३] दक्षिणदिशावर्ती धूमप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से चौथी पंकप्रभापृथ्वी के नैरयिक पूर्व, पश्चिम और उत्तर में असंख्यातगुणे हैं; ( उनसे) असंख्यातगुणे दक्षिणदिशा में हैं।
[४] दाहिणिल्लेहिंतो पंकप्पभापुढविनेरइएहिंतो तइयाए वालुयप्पभाए पुढवीए नेरइया पुरत्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणेणं असंखिज्जगुणा ।
[२१७-४] दक्षिणात्य पंकप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से तीसरी वालुकाप्रभापृथ्वी के नैरयिक पूर्व, पश्चिम तथा उत्तर में असंख्यातगुणे हैं और दक्षिणदिशा में (उनसे भी) असंख्यातगुणे हैं ।
[५] दाहिणिल्लेर्हितो वालुयप्यभापुढविनेरइएहिंतो दुइयाए सक्करप्पभाए पुढवीए णेरइया पुरत्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं असंखिज्जगुणा, दाहिणेणं असंखिज्जगुणा ।
[२१७-५] दक्षिणदिशा के बालुकाप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से दूसरी शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिक पूर्व, पश्चिम तथा उत्तर में असंख्यातगुणे हैं और दक्षिणादिशा में उनसे भी असंख्यातगुणे हैं।
[ ६ ] दाहिणिल्लेहिंतो सक्करप्पभापुढविनेरइएहिंतो इमीसे रयणप्पभाएं पुढवीए नेरइया पुरत्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणेणं असंखेज्जगुणा ।
[२१७-६] दक्षिणदिशा के शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से इस पहली रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक पूर्व, पश्चिम और उत्तर में असंख्यातगुणे हैं और उनसे भी दक्षिणदिशा में असंख्यातगुणे हैं।
२१८. दिसाणुवातेणं सव्वत्थोवा पंचेंदियतिरिक्खजोणिया पच्चत्थिमेणं, पुरत्थिमेणं विसेसाहिया, दाहिणेणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया ।
[२१८] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव पश्चिम में हैं। पूर्व में (इनसे) विशेषाधिक हैं, दक्षिण में (इनसे) विशेषाधिक हैं और उत्तर में ( इनसे भी) विशेषाधिक हैं। २१९. दिसाणुवातेणं सव्वत्थोवा मणुस्सा दाहिणउत्तरेणं, पुरत्थिमेणं संखेज्जगुणा, पच्चत्थि - मेणं विसेसाहिया |
[२१९] दिशाओं की अपेक्षा सबसे कम मनुष्य दक्षिण एवं उत्तर में हैं, पूर्व में (उनसे ) संख्यातगुणे अधिक हैं और पश्चिमदिशा में (उनसे भी) विशेषाधिक हैं।
२२०. दिसाणुवातेणं सव्वत्थोवा भवणवासी देवा पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं, उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणेणं असंखेज्जगुणा ।